Waqf Bill History: वक्फ बिल को लेकर आज बुधवार को लोकसभा में चर्चा चल रही है। इस बिल के समर्थन में कुछ हैं तो कुछ विरोध भी कर रहे हैं। सरकार का दावा है कि इस बिल से आम मुस्लिमों का फायदा ही होगा, वहीं वक्फ बोर्ड का मानना है कि उनकी ताकत छीनने की कोशिश हो रही है, एक धारणा ये भी सेट की जा रही है कि उनकी जमीन पर सरकार कब्जा करेगी। अब इस विवाद के बीच एक सवाल जरूर मन में आता है- पहले कैसे किसी जमीन का मालिकाना हक तय होता था? बात चाहे वैदिक काल की हो, मुगल काल की या फिर ब्रिटिश काल, तब कैसे तय होता था कि यह जमीन किसकी है?
इतिहास के पन्ने पलटने पर इस बारे में काफी जानकारी मिलती है। यह जानकारी बताती है कि पहले जमीन किसी पूरे समाज की हुआ करती थी, बाद में समय के साथ जमीन पर कब्जा किसी राजा का होने लगा, या कहा जा सकता था कि किसी एक शख्स का, उसके बाद जमीदारी सिस्टम आया और फिर बाद में दूसरे कई नियम-कायदे। इतिहासकार राजेश कुमार और कुछ दूसरे इतिहासकारों के रिसर्च पेपर पढ़ने के बाद पता चलता है कि जमीनों को लेकर मालिकाना हक तय होने के नियम काफी बदले हैं।
ऐसा कहा जाता है कि वैदिक युग के समापन के समय जमीन के मालिकाना हक का सिस्टम शुरू हुआ था। किताब ऐतरेय ब्राह्मण के मुताबिक जब विश्वकरमन भूवन पुजारियों को हवन के लिए एक जमीन दान में देना चाहते थे, तब पृथ्वी ने उसका विरोध किया था। उस बात से यह निष्कर्ष निकला कि उस जमाने में जमीन किसी एक राजा या शख्स की नहीं हुआ करती थी, बल्कि किसी एक बिरादरी का उस पर हक रहता था।
अगर महाजनपद काल की ओर बढ़ा जाए तो तब भी जमीनों का जिक्र तो रहता था। इस काल में जो भी संपत्ति किसी के आजीविका का साधन रहती थी, उसे कभी भी विभाजित नहीं किया जा सकता था। बाद में जब मौर्य काल आया, तब पहली बार जिक्र हुआ कि जमीन का मालिकाना हक एक राजा के पास होता है। चाणक्य कहते थे कि जितनी भी खेती वाली जमीन होती है, उस पर राजा का हक रहना चाहिए क्योंकि प्रजा का ध्यान रखने की जिम्मेदारी एक शासक की होती है। लेकिन वे यह नहीं मानते थे कि पूरी जमीन ही किसी राजा के नाम कर दी जाए।
पूरी जमीन राजा की ही है, यह नियम गुप्त काल के बाद शुरू हुआ था। ऋषि कात्यायन कहते थे कि किसी भी जमीन का मालिक वहां का राजा होता है, एक चौथाई जमीन पर उसका कब्जा रहता है। इसी तथ्य को नरसिंह पुराण ने भी आगे बढ़ाया जिसने राजा को ही किसी भी जमीन का मालिकाना हक देने की बात कही। यहां पर समझने वाली बात यह है कि वैदिक काल के बाद अगर जमीन किसी बिरादरी की हुआ करती थी, गुप्त काल के बाद उसी जमीन पर राजा का हक होने लगा।
वक्फ बोर्ड को लेकर लोकसभा में जारी चर्चा, सारी अपडेट यहां
नरद स्मृति इसी जमीन के मालिकाना हक को लेकर अहम बात बताती है। नरद स्मृति के मुताबिक अगर किसी परिवार के पास तीन पीढ़ी तक कोई जमीन है, तो उस पर मालिकाना हक भी उसी का हो जाएगा। लेकिन इतना जरूर है कि कोई राजा जब चाहे उस जमीन को किसी दूसरे किसान परिवार को सौंप सकता है। यह बताने के लिए काफी है कि किसी परिवार को जमीन का मालिकाना हक तो मिल सकता था, लेकिन वो राजा से ऊपर नहीं था। वैसे याज्ञवल्क्य स्मृति बताती है कि अगर किसी जमीन पर कोई पीढ़ी 20 साल तक रहती थी, उस जमीन पर उसका हक हो जाता था।
बाद में विष्णु, नरद स्मृति ने इसी समय को 20 साल से बढ़ातर 60 साल कर दिया। फिर 11वीं शताब्दी में मिताक्षरा याज्ञवल्क्य स्मृति आई जिसने कहा कि अगर कोई परिवार 100 साल तक किसी जमीन रहेगा तो उस पर उसका हक हो जाएगा। बाद में स्मृति चंद्रिका ने इस समय को बढ़ाकर 105 साल कर दिया। अब अभी तक जो भी नियम जमीन को लेकर चल रहे थे, वो सभी हिंदू परिवारों से जुड़े हुए थे। इस काल तक इस्लाम भारत में नहीं आया थ। फिर साल 1200 आया और मुस्लिम शासक हिंदुस्तान में आने लगे।
सल्तनत दौर के समय जमीन को तीन हिस्से में बांटा गया था। पहला हिस्सा रहता था ‘खालसा’ जो सीधे सेंटर या फिर सल्तनत के अंदर आता था। दूसरा हिस्सा होता था ‘एकता’ जो अधिकारियों को दे दिया जाता था। उस जमीन से जो भी पैसा मिलता था, उसी से इन अधिकारियों को सैलरी मिलती थी, बाकी पैसा वापस सल्तनत के पास चले जाता था। तीसरे प्रकार की जो जमीन होती थी, उसे पुजारियों और बुद्धिजीवियों को बांट दिया जाता था। सल्तनत दौर में खूट, मुकद्दम और चौधरी समाज के पास सबसे ज्यादा जमीन हुआ करती थी।
इतिहास की ही किताबें बताती हैं शेरशाह सूरी ‘जब्त’ सिस्टम लेकर आए थे, उनकी तरफ से जमीन के बदले टैक्स देने की बात हुई थी। जितनी भी खेती वाली जमीन होती थी, पहले उसे नापा जाता था और फिर किसान को सौंप दिया जाता था। उस समय ही किसान को बताया जाता था कि उसे उस जमीन के लिए कितना टैक्स देना होगा। ऐसा माना जाता है कि जब्त सिस्टम के समय जमीदारों का शोषण कम हुआ था। लेकिन फिर मुगल काल के दौरान जमीदारों की अहमियत फिर काफी ज्यादा बढ़ गई।
मुगल काल के दौरान दो तरह के किसान देखे गए थे, एक रहे खुदकाश्त जिनके पास खुद की जमीन होती थी, दूसरे रहे पाहिकाश्त जो दूसरे जमीनदारों की जमीन पर खेती किया करते थे। ऐसा कहा जाता है कि इसी सिस्टम की वजह से जमीनों को लेकर सेटलमेंट वाला दौर भी शुरू हो गया था। अब इन्हीं जमीनों से पैसा कमाने का जरिया भी आने वाले समय में बनने वाला था। जब ईस्ट इंडिया कंपनी भारत आई, अंग्रेजों की हुकूमत शुरू हुई, जमीदारी सिस्टम का भी आगाज हो गया।
इस जमीदारी सिस्टम में जमीदारों को किसी भी जमीन का मालिकाना हक दिया गया। उनसे उम्मीद की गई कि वे किसानों से पूरा पैसा वसूलें और जितना वादा किया वो अंग्रेजी हुकूमत को लाकर दें। अगर उम्मीद के मुताबिक राजस्व नहीं मिला तो उस जमीदार से जमीन का मालिकाना हक छीन लिया जाता और वो जमीन किसी और को बेच दी जाती। आजादी के बाद इस जमीदारी सिस्टम को खत्म करने के लिए कई कानून बने, पूरा प्रयास रहा कि भेदभाव को खत्म किया जा सके, लेकिन आज भी अमीर ज्यादा अमीर हैं और गरीब और ज्यादा गरीब। इसके ऊपर हिंदू-मुस्लिम के खेल ने इस जमीन के टुकड़े को और ज्यादा जटिल बना दिया है। वक्फ जमीन भी इसी का एक उदाहरण है जिसको लेकर आज चर्चा जारी है।