Delhi Traffic: दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट के पास जाम की समस्या से परेशान एक वकील ने इस मामले को सिविल जज रिंकू जैन के पास उठाया है। उसने कहा कि यहां हर शाम करीब 5.30 बजे ऐसी स्थिति हो जाती है कि आम यात्रियों को यहां से 100 मीटर की दूरी पार करना किसी संघर्ष से कम नहीं है। 100 मीटर की दूरी को पार करने में करीब आधे घंटे से भी ज्यादा का वक्त लग सकता है।
तीस हजारी परिसर के आसपास सड़कों और फुटपाथों पर अवैध अतिक्रमण हटाने के उनके अनुरोध के बाद कोर्ट ने मंगलवार को वकील देवेंद्र धीरयान द्वारा दायर मुकदमे की सुनवाई करते हुए दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) और यातायात पुलिस को नोटिस जारी किया।
कोर्ट ने कहा कि एनडीओएच (अगली सुनवाई की तारीख) पर सभी प्रतिवादियों की ओर से विस्तृत स्थिति रिपोर्ट दाखिल की जाए। प्रतिवादी संख्या 1, 2 और 3 (एमसीडी, एसएचओ पुलिस स्टेशन कश्मीरी गेट और एसएचओ पुलिस स्टेशन सब्जी मंडी) की ओर से दाखिल किए जाने वाले जवाब में तीस हजारी कोर्ट के आसपास काम करने वाले विक्रेताओं का पूरा ब्योरा भी दिया जाना चाहिए। खासतौर पर यह उल्लेख किया जाना चाहिए कि कितने विक्रेताओं को तहबाजारी का लाइसेंस दिया गया है और अवैध रूप से काम करने वाले विक्रेताओं के खिलाफ क्या कार्रवाई की गई है।
इसमें कहा गया है कि प्रतिवादी संख्या 2 से 4 (डीसीपी ट्रैफिक) प्रतिबंधित प्रवेश समय के दौरान चलने वाले वाणिज्यिक वाहनों/भारी वाहनों के संबंध में एक स्थिति रिपोर्ट भी दाखिल करेंगे।
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अदालत में पेश की गई अपनी याचिका में धीरयान ने आरोप लगाया कि तीस हजारी कोर्ट और उसके आस-पास के इलाकों के 1 किलोमीटर के दायरे में अवैध अतिक्रमण, यातायात जाम और अनियमित गतिविधियां बढ़ गई हैं।
उन्होंने अपनी याचिका में कहा कि रेहड़ी-पटरी वाले अवैध रूप से ऊपर बताए गए इलाके/सड़कों और फुटपाथों पर कब्जा कर लेते हैं, फेरीवाले और दुकानदार अपने उत्पाद बेचने के लिए सार्वजनिक स्थान पर अतिक्रमण कर लेते हैं। इससे पैदल चलने वालों को बहुत असुविधा होती है, जो सड़कों पर चलने के लिए मजबूर होते हैं, जिससे दुर्घटनाओं की संभावना बढ़ जाती है और वाहनों की मुक्त आवाजाही बाधित होती है। सार्वजनिक सड़कें वाहनों की अवैध पार्किंग से और भी बाधित होती हैं… जिससे बार-बार ट्रैफिक जाम होता है और वायु प्रदूषण में योगदान होता है।
वकील धीरयान ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि कई बार हमें पैदल चलना पड़ता है। सुबह के समय ट्रैफिक के कारण वकील समय पर कोर्ट नहीं पहुंच पाते। इस वजह से कई बार सुनवाई स्थगित करनी पड़ती है।”
तीस हजारी में करीब 180 कोर्ट रूम हैं। यह दिल्ली की सबसे पुरानी निचली अदालत है। जिसका उद्घाटन 1958 में हुआ था। पीडब्ल्यूडी के एक इंजीनियर के अनुसार, यहां प्रतिदिन करीब 40,000 लोग आते हैं।
तीस हजारी (पश्चिम) में करीब 94,000 मामले लंबित हैं और तीस हजारी (मध्य) में 2 लाख मामले लंबित हैं। नेशनल ज्यूडिशियल डेटा ग्रिड के अनुसार, तीस हजारी (पश्चिम जिला) में 24,642 (कुल का करीब 27%) मामले वकील की अनुपलब्धता के कारण लंबित हैं।
कोर्ट के बाहर सैकड़ों गाड़ियां खड़ी होती हैं। जिनमें से ज़्यादातर पर वकीलों के स्टिकर लगे हैं। नाम न बताने की शर्त पर एक वकील ने बताया कि वकीलों के लिए अलग से पार्किंग की व्यवस्था है, लेकिन बसें उस जगह को घेर लेती हैं। हमारे पास अपनी गाड़ियां मुख्य सड़क पर पार्क करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।
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एक पार्किंग टिकट कलेक्टर ने भी इंडियन एक्सप्रेस से बात की। उन्होंने कहा कि मेरे जैसे करीब 20-22 लोग काम करते हैं। हम टिकट बेचकर रोजाना करीब 2,000 रुपये कमाते हैं। हम वकीलों से पैसे नहीं मांगते, सिर्फ निजी वाहनों से ही पैसे मांगते हैं।
इंडियन एक्सप्रेस को पता चला है कि निजी वाहनों (वकीलों के नहीं) से पार्किंग की अवधि की परवाह किए बिना अधिकतम 100 रुपये शुल्क लिया जाता है। कोर्ट में धीरयान की सहायता अधिवक्ता अमित श्रीवास्तव और करण तलवार ने की। मामले से जुड़े कई अधिवक्ता भी एकजुटता से शामिल हुए और न्यायाधीश से सुनवाई में तेजी लाने का अनुरोध किया। मामले में खुद रुचि दिखाते हुए न्यायाधीश ने 26 मार्च की तारीख दी।
धीरयान ने कहा कि फुटपाथ पर इतने अतिक्रमण हैं कि मैं न्यायाधीश को उचित फोटो भी नहीं दे सका। अधिवक्ता आशान्वित हैं, क्योंकि उन्हें ट्रॉनिका सिटी, गाजियाबाद में दायर की गई इसी प्रकार की याचिका में राहत मिल गई है। एक अन्य वकील ने कहा कि इस पार्किंग माफिया में हर कोई शामिल है। कानूनी जगह पर अवैध काम हो रहा है।
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(इंडियन एक्सप्रेस के लिए निर्भय ठाकुर की रिपोर्ट)