What is Black Box in Aeroplane, Ahmedabad Plane Crash: गुजरात के अहमदाबाद में एयर इंडिया का प्लेन क्रैश हो गया। 12 जून 2025 को एयर इंडिया का प्लेन जब अहमदाबाद एयरपोर्ट से टेक ऑफ कर रहा था, तभी वह अहमदाबाद के मेघानी नगर में दुर्घटनाग्रस्त हो गया। ऐसे में यहां यह जानना जरूरी हो जाता है कि ‘ब्लैक बॉक्स’ क्या होता है?
विमान के क्रैश होने पर जांचकर्ता अक्सर ‘ब्लैक बॉक्स’ की तलाश करते हैं। जिससे जांचकर्ताओं के लिए यह जानने में काफी सहूलियत होती है कि आखिर विमान के दुर्घटना का कारण क्या था। आइए ऐसे में यह जानने की कोशिश करते हैं कि आखिर ‘ब्लैक बॉक्स’ क्या है और यह कैसे काम करता है। पहली बार इसका प्रयोग कब किया गया
फ्लाइट में किसी भी दुर्घटना का पता लगाने के लिए ब्लैक बॉक्स का इस्तेमाल किया जाता है। ये उड़ान से जुड़ी सभी जानकारियों और गतिविधियों को रिकॉर्ड करता है। इसी वजह से इसे फ्लाइट डाटा रिकॉर्डर (FDR) भी कहा जाता है। दुर्घटना के दौरान इसे सुरक्षित रखने के लिए इसे सबसे मजबूत धातु टाइटेनियम से बनाया जाता है। इसकी मजबूती इस कदर होती है कि किसी दुर्घटना के होने पर भी ब्लैक बॉक्स सुरक्षित रहता है।
इस ब्लैक बॉक्स से जानकारी जुटाई जाती है कि असल में हुआ क्या था। ब्लैक बॉक्स का इस्तेमाल 1950 के दशक की शुरुआत में शुरू हुआ था, जब विमान दुर्घटनाओं के बाद जांचकर्ता दुर्घटनाओं के निर्णायक कारण का पता लगाने में असमर्थ थे। डेविड वॉरेन नामक एक ऑस्ट्रेलियाई वैज्ञानिक को अक्सर इसके आविष्कार का श्रेय दिया जाता है।
शुरुआत में इसका रंग लाल होता था। उस दौरान इसे रेड एग कहा जाता था। लेकिन फिर भीतरी दीवार के काले होने के कारण इस डिब्बे को ब्लैक बॉक्स कहा जाने लगा। मिट्टी, झाड़ियों में गिरने के बाद भी यह दिखाई दे, इसके लिए इसका ऊपरी हिस्सा लाल या गुलाबी रंग का रखा जाता है।
इस बॉक्स को हर प्लेन में सबसे पीछे की तरफ रखा जाता है। इसकी वजह यह है कि ताकि दुर्घटना होने पर यह सुरक्षित रह सके। एक सामान्य ब्लैक बॉक्स का वजन लगभग 10 पाउंड (4.5 किलो) होता है। इसके अंदर रिकॉर्डिंग के लिए नाखून के आकार की चिप होती है। इसमें दो रिकॉर्डर होते हैं। कॉकपिट से आने वाली आवाजों के लिए एक कॉकपिट वॉयस रिकॉर्डर (CVR) और दूसरा फ्लाइट डेटा रिकॉर्डर (FDR)।
ब्लैक बॉक्स से प्राप्त डेटा का विश्लेषण करने में आमतौर पर 10-15 दिन लगते हैं। इस बीच जांचकर्ता अन्य सुरागों की तलाश करते हैं जैसे कि एयर ट्रैफ़िक कंट्रोल कर्मियों से जानकारी लेना और दुर्घटना से पहले एटीसी और पायलटों के बीच बातचीत की रिकॉर्डिंग। इससे जांचकर्ताओं को यह समझने में मदद मिलती है कि क्या पायलटों को पता था कि वे ऐसी स्थिति में हैं जो ऐसी स्थिति की ओर ले जा रही थी और यदि ऐसा था, तो क्या उन्होंने विमान को नियंत्रित करने में किसी समस्या की सूचना दी थी।