इस साल जी-7 देशों का शिखर सम्मेलन 15 से 17 जून तक कनाडा के अल्बर्टा प्रांत के कानानास्किस में आयोजित किया जा रहा है। इस सम्मेलन में अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन, जापान, इटली, जर्मनी और कनाडा के शीर्ष नेताओं की भागीदारी होगी। भारत इस समूह का हिस्सा नहीं है लेकिन इस सम्मेलन में वो भी हिस्सा लेगा। आमतौर पर जी-7 की मेजबानी कर रहे देश इस समूह से इतर देशों को भी न्योता देते हैं। कनाडा के प्रधानमंत्री मार्क कार्नी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस सम्मेलन के लिए आमंत्रित किया है। आइए जानते हैं क्या है जी-7, कितनी ताकत है इस मंच की।
जी 7 यानी दुनिया की सात ‘अत्याधुनिक’ अर्थव्यवस्थाओं का एक गठजोड़, जिसका वैश्विक व्यापार और अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था पर दबदबा है। वर्ष 2000 में इस गुट की वैश्विक जीडीपी में 40 फीसदी की हिस्सेदारी थी। मगर इसके बाद इसमें गिरावट आई है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष पर मौजूद आंकड़ों के अनुसार,अब वैश्विक जीडीपी में इन जी-7 देशों की हिस्सेदारी 28.43 फीसदी है। साल 2014 से पहले जी-7 असल में जी-8 हुआ करता था। इसमें आठवां देश रूस था, पर साल 2014 में रूस के क्राइमिया पर कब्जे के बाद उसे इस गुट से निकाल दिया गया। एक बड़ी अर्थव्यवस्था और दुनिया का दूसरा सबसे अधिक आबादी वाला देश होने के बावजूद चीन कभी भी इस गुट का हिस्सा नहीं रहा है। चीन में प्रति व्यक्ति आय इन सात देशों की तुलना में बहुत कम है। इसलिए चीन को एक अग्रीम अर्थव्यवस्था नहीं माना जाता, लेकिन भारत, चीन और अन्य विकासशील देश जी 20 समूह में हैं। यूरोपीय संघ भी जी-7 का हिस्सा नहीं है, लेकिन उसके अधिकारी जी-7 के वार्षिक शिखर सम्मेलनों में शामिल होते हैं।
पूरे साल जी-7 देशों के मंत्री और अधिकारी बैठकें करते हैं, समझौते तैयार करते हैं और वैश्विक घटनाओं पर साझे वक्तव्य जारी करते हैं। इस बार जी-7 समूह के पचास साल भी पूरे हो रहे हैं। हर साल इसके सातों सदस्य देश बारी-बारी से इसकी अध्यक्षता करते हैं। कनाडा इस बार जी-7 की अध्यक्षता कर रहा है। इस बार शिखर सम्मेलन के एजेंडे में अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के साथ ही वैश्विक आर्थिक स्थिरता, विकास से लेकर डिजिटल ट्रांजिशन, वैश्विक चुनौतियां हैं। अमेरिका, फ्रांस, इटली, जापान, ब्रिटेन और वेस्ट जर्मनी ने साल 1975 में छह देशों का एक समूह बनाया।
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उस समय ये समूह 1973 में बड़े तेल उत्पादक देशों की ओर से तेल के निर्यात पर लगाई पाबंदियों से उपजी आर्थिक चुनौतियों का हल निकालने के लिए बनाया गया था। इसके अगले साल कनाडा भी इसमें शामिल हुआ। फिर 1980 के दशक में इन सात देशों ने अपना दायरा बढ़ाते हुए राजनीतिक मुद्दों को भी जगह देने की शुरूआत की। वर्ष 1998 में रूस औपचारिक तौर पर इस गुट का हिस्सा बना और इसे जी-8 कहा जाने लगा। जी-7 का कोई कानूनी अस्तित्व नहीं है, न तो इसका कोई स्थायी कार्यालय है। लेकिन ये सदस्य देशों को एक मंच देता है, जहां वे साझा चिंताओं या मुद्दों पर चर्चा करते हैं।
जी-7 देश कोई कानून पारित नहीं कर सकते। ये कोई औपचारिक गुट नहीं है और इसके लिए फैसलों का पालन भी अनिवार्य नहीं है। हालांकि, इस गुट के अतीत में लिए कुछ फैसलों का वैश्विक स्तर पर असर रहा है। उदाहरण के लिए साल 2002 में मलेरिया और एड्स जैसी बीमारियों से लड़ने के लिए वैश्विक फंड बनाने में इस समूह ने अहम भूमिका निभाई थी। साल 2021 का शिखर सम्मेलन ब्रिटेन में हुआ था, लेकिन उससे पहले ही इस गुट के वित्त मंत्रियों के बीच ये सहमति बनी थी कि मल्टीनेशनल कंपनियों को अधिक टैक्स देना होगा। ये समूह विकासशील देशों को वित्तीय मदद भी देता है और जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए इसने अहम कदम भी उठाए हैं।
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साउथ एशिया मामलों के विशेषज्ञ माइकल कुगेलमैन बताते हैं कि भारत को जी-7 शिखर सम्मेलन में न्योता मिलना भारत के वैश्विक महत्व को दिखाता है। ये भारत-कनाडा के बीच उभरते तनाव को नहीं दिखाता है। आने वाले समय में रिश्तों में नरमी आने के संकेत हैं। लेकिन आखिरकार पश्चिमी और दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के एक शीर्ष भागीदार को शिखर सम्मेलन से बाहर रखना मुश्किल है।
सामरिक जानकार ब्रह्मा चेलानी की मानें तो कार्नी की ये पहल 38 देशों के अंतरराष्ट्रीय संगठन आर्गेनाइजेशन फार इकोनामिक कोआपरेशन यानी ओईसीडी की चेतावनी के बाद हुई है। जिसमें कहा गया कनाडा की अर्थव्यवस्था वैश्विक मंदी से सबसे अधिक प्रभावित होगी। साफ है कि कार्नी भारत और चीन दोनों के साथ तनावपूर्ण संबंधों को सुधारकर कनाडा की स्थिर अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने की कोशिश कर रहे हैं। –
भारत को भले ही सम्मेलन के लिए आमंत्रित किया है, लेकिन यह जी-7 समूह का हिस्सा नहीं है। जब जी-7 बना था तब भारत एक विकासशील देश था और गरीबी से जूझ रहा था। जी-7 का गठन विकसित देशों के लिए किया गया था जिनकी अर्थव्यवस्थाएं वैश्विक रूप से मजबूत थीं। भारत उस दौर में इस मानदंड पर खरा नहीं उतर रहा था। जी-7 अब अपने समूह का विस्तार नहीं करता। नए सदस्यों को नहीं जोड़ता है। यही वजह है कि भारत इस समूह का हिस्सा नहीं है।