Maharashtra-Karnataka Border Tension: बेलगावी में बस कंडक्टर की पिटाई के बाद एक बार फिर महाराष्ट्र और कर्नाटक के बीच सीमा को लेकर चल रहा पुराना विवाद भड़क गया है। ताजा मामले में कर्नाटक के कंडक्टर की पिटाई सिर्फ इसलिए कर दी गई क्योंकि उसने मराठी भाषा में जवाब नहीं दिया। इसके जवाब मे कर्नाटक के चित्रदुर्ग जिले में महाराष्ट्र सड़क परिवहन निगम के एक बस चालक पर कुछ लोगों ने हमला किया और उसका मुंह काला कर दिया।

इस पूरे विवाद की वजह से दोनों देशों के बीच बस सेवाओं पर असर पड़ा है। दोनों ही राज्यों की सरकारों ने अपने-अपने यात्रियों और परिवहन स्टाफ की सुरक्षा को लेकर चिंता जताई है। महाराष्ट्र कर्नाटक के बीच यह विवाद कब से चला आ रहा है और इसके पीछे की वजह क्या है, आइए इस बारे में बात करते हैं।

मराठी भाषी आबादी वाला बेलगावी (पूर्व में बेलगाम) जिला दोनों राज्यों के बीच 65 साल से विवाद का केंद्र बना हुआ है। बेलगावी पुराने वक्त में बॉम्बे प्रेसीडेंसी का हिस्सा था। महाराष्ट्र ने बेलगावी के अलावा 865 मराठी भाषी गांवों पर भी दावा किया है। बेलगावी और ये गांव वर्तमान में कर्नाटक की सीमा में आते हैं।

क्या बीजेपी का पसमांदा मुसलमानों से मोहभंग हो गया है, मुस्लिम आरक्षण का विरोध क्यों कर रही है पार्टी?

1956 में राज्य पुनर्गठन अधिनियम पारित हुआ। 1 मई, 1960 को राज्य के गठन के बाद महाराष्ट्र ने दावा किया कि बेलगावी, कारवार सहित 865 गांव महाराष्ट्र का हिस्सा होने चाहिए लेकिन कर्नाटक ने इस दावे को चुनौती दी। महाराष्ट्र सरकार ने कर्नाटक के साथ अपनी सीमा फिर से तय करने की मांग की है। कर्नाटक सरकार ने बेलगावी और अन्य इलाकों को लेकर किए गए ऐसे किसी भी दावों का बार-बार विरोध किया है। कर्नाटक ने तो बेलगावी में सुवर्ण विधान सौधा का निर्माण किया है, जहां राज्य विधानमंडल का वार्षिक सत्र आयोजित होता है।

25 अक्टूबर, 1966 को केंद्र सरकार ने महाराष्ट्र के आग्रह पर इस विवाद को सुलझाने के लिए सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश मेहर चंद महाजन की अध्यक्षता में महाजन आयोग का गठन किया। महाजन आयोग ने बेलगावी पर महाराष्ट्र के दावों को खारिज कर दिया और कर्नाटक के पक्ष में फैसला सुनाया। आयोग ने सिफारिश की कि जट्ट, अक्कलकोट और सोलापुर सहित महाराष्ट्र के 247 गांवों और स्थानों को कर्नाटक का ही हिस्सा बनाया जाए।

आयोग ने यह भी प्रस्ताव रखा कि निप्पनी, खानपुर और नंदगढ़ सहित 264 गांवों और इलाकों को महाराष्ट्र को सौंप दिया जाए। महाराष्ट्र ने महाजन आयोग की रिपोर्ट को सिरे से खारिज कर दिया और कहा कि आयोग ने उसकी चिंताओं पर ध्यान नहीं दिया और कर्नाटक का पक्ष लिया।

विवाद के लंबे चलने पर 2004 में महाराष्ट्र ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जहां इस पर कई बार सुनवाई हो चुकी है।

BJP के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष को लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म, क्या दक्षिण के किसी नेता को मिलेगा मौका?

2022 में भी दोनों राज्यों के बीच सीमा विवाद तब भड़क गया था, जब महाराष्ट्र के तत्कालीन सीएम एकनाथ शिंदे ने सीमा विवाद के मामले में बयान दिया था कि कर्नाटक के बेलगावी और अन्य मराठी भाषी क्षेत्रों में रहने वाले स्वतंत्रता सेनानियों को ज्योतिबा फुले जन आरोग्य योजना के तहत पेंशन और मुफ्त चिकित्सा देखभाल की सुविधा मिलेगी।

इस कदम के जवाब में कर्नाटक के तत्कालीन सीएम बसवराज बोम्मई ने महाराष्ट्र के सभी कन्नड़ स्कूलों के लिए अनुदान देने की घोषणा की थी। उस समय, दोनों राज्यों की सरकारों में बीजेपी हिस्सेदार थी। कर्नाटक में उसकी खुद की सरकार थी और महाराष्ट्र में वह एकनाथ शिंदे की शिवसेना के साथ गठबंधन में सरकार चला रही थी। बोम्मई ने कहा था कि उनकी सरकार महाराष्ट्र के सांगली जिले के जट्ट तालुका के 40 गांवों पर दावा कर सकती है। बोम्मई ने यह भी कहा था कि कर्नाटक सोलापुर के सीमावर्ती गांवों पर भी दावा करेगा।

हरियाणा, महाराष्ट्र और दिल्ली में हार के बाद बिहार पर कांग्रेस का फोकस…किस रणनीति पर काम कर रही पार्टी?

27 दिसंबर, 2022 को महाराष्ट्र विधानसभा ने सर्वसम्मति से सीमा विवाद पर एक प्रस्ताव पारित किया। प्रस्ताव में कहा गया था, ‘बेलगावी, निप्पनी, कारवार, बीदर और भालकी शहर, साथ ही कर्नाटक के सभी मराठी भाषी गांव’ महाराष्ट्र का हिस्सा थे और राज्य की सरकार ‘सुप्रीम कोर्ट में कानूनी प्रावधानों को प्रभावी ढंग से आगे बढ़ाएगी।’

बस कंडक्टर की पिटाई जैसी कई घटनाएं दोनों राज्यों के लोगों के बीच बेलगावी और इसके आसपास के इलाकों में हो चुकी हैं। सीमा को लेकर चल रहा यह विवाद लोगों की जान के लिए मुसीबत बन गया है क्योंकि इस विवाद के कभी भी बड़ा रुप लेने का खतरा बना रहता है। इस वजह से दोनों ही राज्यों के बीच तनाव भी बढ़ रहा है। पुलिस और प्रशासन को भी सीमावर्ती इलाकों में हालात को सामान्य बनाए रखने में काफी मशक्कत करनी पड़ती है।

यहां क्लिक कर पढ़िए क्या इस समुदाय का सपोर्ट मिलने की वजह से दिल्ली में चुनाव जीत गई BJP और हार गई AAP?