भारतीय जनता पार्टी के नेता अश्विनी कुमार चौबे ने 27 मई को मांग की है कि केंद्र वरिष्ठ नेता ललित नारायण मिश्रा की हत्या की जांच के लिए एक एसआईटी का गठन करे। मिश्रा जनवरी 1975 में समस्तीपुर में एक बम धमाके में मारे गए थे। इंदिरा गांधी के मंत्रिमंडल में मिश्रा रेल मंत्री थे। वह तीन बार बिहार के सीएम रहे जगन्नाथ मिश्रा के बड़े भाई थे और उस वक्त बिहार के सबसे कद्दावर कांग्रेस नेताओं में से एक थे।

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, चौबे ने यह मांग पीएम मोदी के बिहार दौरे के समय उठाई। जब उनसे सवाल किया गया कि मिश्रा की हत्या की जांच पांच दशक के बाद उन्होंने क्यों उठाई तो चौबे ने कहा, ‘अगर 1984 के दंगों के मामले को नए सिरे से देखा जा सकता है, तो एलएन मिश्रा मामले में नए सिरे से जांच क्यों नहीं हो सकती? आखिरकार, वह बिहार के सबसे फेमस नेताओं में से एक थे। उनकी हत्या के बाद जनता में इतना गुस्सा था कि कांग्रेस को उनके छोटे भाई जगन्नाथ मिश्रा को बिहार का सीएम बनाना पड़ा।’

अब एलएन मिश्रा की बात करें तो वह तीन बार के लोकसभा सांसद थे और दो बार राज्यसभा के सदस्य रहे। उन्होंने अपना पॉलिटिकल जीवन जवाहरलाल नेहरू के अंडर में शुरू किया। इतना ही नहीं उन्होंने बेरोजगारी और योजना के जूनियर मंत्री, गृह राज्य मंत्री और वित्त राज्य मंत्री जैसे कई पदों पर काम किया। उनको 5 फरवरी 1973 को रेल मंत्री नियुक्त किया गया। एक ऐसा भी वक्त था जब उन्हें इंदिरा गांधी के टॉप पांच मंत्रियों में से एक माना जाता था।

2 जनवरी 1975 को मिश्रा समस्तीपुर से मुजफ्फरपुर तक ब्रॉड-गेज रेलवे लाइन का उद्घाटन करने के लिए समस्तीपुर रेलवे स्टेशन पहुंचे। जैसे ही वे अपना भाषण खत्म करके मंच से उतरने वाले थे, मंच की ओर ग्रेनेड फेंके गए। अगले दिन मिश्रा की मौत हो गई। उनके साथ एमएलसी सूर्य नारायण झा और रेलवे क्लर्क राम किशोर प्रसाद भी मारे गए।

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स्थानीय रेलवे पुलिस स्टेशन में उसी दिन केस दर्ज किया गया और इस मामले को 10 जनवरी को सीबीआई ने अपने हाथ में ले लिया। हत्या के सिलसिले में सीबीआई के चार लोगों को अरेस्ट किया। इसमें अरुण कुमार ठाकुर, अरुण कुमार मिश्रा, शिवलाल शर्मा और उमाकांत झा का नाम शामिल है। एजेंसी ने आनंद मार्ग संप्रदाय पर दोष मढ़ा और हत्या के बाद आनंद मार्ग पर दो साल के लिए बैन लगा दिया गया।

हालांकि, मिश्रा के पोते और सुप्रीम कोर्ट के वकील वैभव मिश्रा का मानना ​​है कि आनंद मार्गियों का इस हत्या से कोई लेना-देना नहीं है। उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस से कहा, ‘सीबीआई अपनी जांच में शुरू से ही अस्पष्ट रही है। चार शुरुआती गिरफ्तारियों के बाद, उसने जुलाई-अगस्त 1975 में आनंदमार्गी समूह के कुछ और सदस्यों को गिरफ्तार किया। नवंबर 1975 में अरुण कुमार मिश्रा और अरुण कुमार ठाकुर के खिलाफ हत्या के आरोप हटा दिए गए।’

30 अगस्त 1978 को बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर ने तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई को पत्र लिखकर बताया कि उनके प्रशासन ने हत्या की अलग और सीक्रेट जांच के आदेश दिए है। बिहार पुलिस के क्रिमिनल इंवेस्टिगेशन डिपार्टमेंट के तत्कालीन डीआईजी शशि भूषण सहाय ने सीएम को रिपोर्ट सौंपी। अगले साल 15 फरवरी को जस्टिस (Retd.) वीएम तारकुंडे ने भी सीएम को हत्या मामले पर एक रिपोर्ट सौंपी। वैभव मिश्रा के अनुसार, दोनों रिपोर्टों ने हत्या के पीछे गहरी साजिश की ओर इशारा किया।

कई दशकों के बाद 15 अगस्त 2012 को सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट को सुनवाई में तेजी लाने और मामले का निपटारा करने का निर्देश दिया। 14 दिसंबर 2014 को आरोपी संतोषानंद अवधूत, सुदेवानंद अवधूत, रंजन द्विवेदी और गोपालजी को उम्रकैद की सजा सुनाई गई। ये सभी आनंदमार्गी थे। कुल 213 गवाहों की जांच की गई। दिल्ली हाई कोर्ट में दोषियों की तरफ से दायर की गई अपील अभी भी पेंडिंग है।

पिछले कुछ सालों से वैभव मिश्रा सीबीआई से मामले की जांच फिर से शुरू करने की मांग कर रहे हैं। एजेंसी से कोई जवाब नहीं मिलने के बाद, उन्होंने जुलाई 2021 में दिल्ली हाई कोर्ट का रुख किया। हाई कोर्ट की तरफ से सीबीआई को मिश्रा को जवाब देने का निर्देश दिए जाने के बाद एजेंसी ने जवाब में लिखा कि दोबारा जांच कानूनी तौर पर स्वीकार्य नहीं है क्योंकि दोषसिद्धि के खिलाफ अपील हाई कोर्ट में पेंडिंग है। बिहार के पहले सीएम श्रीकृष्ण सिन्हा ने रखी थी राज्य में विकास की मजबूत नींव