Ayodhya Ram Mandir, Who is Satyendra Das: अयोध्या राम मंदिर के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास का बुधवार की सुबह निधन हो गया था। उन्होंने लखनऊ पीजीआई में 87 वर्ष की उम्र में अंतिम सांस ली। वे राम मंदिर आंदोलन के सबसे महत्वपूर्ण चेहरों में से एक थे और बाबरी मस्जिद विध्वंस से लेकर रामलला के भव्य मंदिर निर्माण तक की यात्रा के साक्षी रहे। हाल ही में उनकी तबीयत बिगड़ने के बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां ब्रेन हेमरेज और ब्लड प्रेशर बढ़ने से उनकी हालत गंभीर हो गई थी। आचार्य सत्येंद्र दास की कहानी अयोध्या के संघर्ष, विजय और आस्था की जीवंत गाथा है। उनके योगदान को आने वाली पीढ़ियां हमेशा याद रखेंगी।

संतकबीर नगर के एक ब्राह्मण परिवार में जन्मे सत्येंद्र दास बचपन से ही धार्मिक प्रवृत्ति के थे। 50 के दशक में उन्होंने अयोध्या का रुख किया और वहां के प्रसिद्ध संत अभिराम दास के शिष्य बन गए। सत्येंद्र दास बचपन में अपने पिता के साथ अयोध्या आया करते थे। इस दौरान वह कई बार संत अभिराम दास जी से मिले। ये अभिराम दास वही थे, जो 1949 में विवादित स्थल पर रामलला की प्रतिमा स्थापित करने वाले बैरागियों में शामिल थे। अभिराम दास से प्रेरित होकर सत्येंद्र दास साधु बनने की इच्छा जताई। पिता ने उनकी इच्छा का सम्मान किया। इसके बाद उन्होंने घर छोड़ दिया और 1958 में अयोध्या चले गये। सत्येंद्र दास, राम विलास वेदांती और हनुमान गढ़ी के धर्मदास के गुरुभाई भी थे।

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1975 में सत्येंद्र दास ने संस्कृत विद्यालय से आचार्य की डिग्री प्राप्त की और अगले साल अयोध्या के संस्कृत महाविद्यालय में सहायक शिक्षक के रूप में नियुक्त हुए। उनकी शिक्षा और धार्मिक ज्ञान ने उन्हें अयोध्या में एक सम्मानित स्थान दिलाया।

1992 के बाबरी मस्जिद विध्वंस के समय सत्येंद्र दास ने ऐतिहासिक भूमिका निभाई। उन्होंने रामलला की मूर्तियों को अपने हाथों में उठाकर सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया। उस समय वह राम जन्मभूमि के मुख्य पुजारी के रूप में नियुक्त थे, और उनकी जिम्मेदारी थी कि रामलला की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए।

सत्येंद्र दास ने एक बार उस दिन की घटना का विस्तार से वर्णन करते हुए कहा था, “6 दिसंबर की सुबह 11 बजे मंच तैयार था। नेताओं ने मुझसे कहा कि रामलला को भोग लगाकर पर्दा बंद कर दें। मैंने भोग लगाकर पर्दा बंद किया। इसके बाद कारसेवकों को सरयू से जल लाकर चबूतरे पर डालने के लिए कहा गया। लेकिन युवा कारसेवकों ने मना कर दिया और नारेबाजी करते हुए बैरिकेडिंग तोड़ दी। वे विवादित ढांचे तक पहुंच गए और उसे गिराने लगे। इस दौरान हमने रामलला को उठाकर सुरक्षित स्थान पर ले गए।”

मार्च 1992 में तत्कालीन रिसीवर द्वारा सत्येंद्र दास को राम जन्मभूमि का पुजारी नियुक्त किया गया। उस समय उन्हें वेतन के रूप में केवल 100 रुपए दिए जाते थे। साल 2018 तक यह बढ़कर 12 हजार रुपए प्रति माह हो गया था। साल 2019 में अयोध्या के रिसीवर और कमिश्नर के निर्देश के बाद यह वेतन बढ़ाकर 13 हजार रुपए कर दिया गया। बाद में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद उनका वेतन बढ़ाकर 38,500 रुपए कर दिया गया। आचार्य सत्येंद्र दास ने 28 साल टेंट में और 4 साल अस्थायी मंदिर में रामलला की पूजा-अर्चना की। राम मंदिर बनने के बाद भी वे मुख्य पुजारी के रूप में अपनी सेवा देते रहे। उनकी बढ़ती उम्र और खराब स्वास्थ्य के बावजूद ट्रस्ट ने उन्हें मंदिर में आने-जाने और पूजा करने की पूरी स्वतंत्रता दी थी।

आचार्य सत्येंद्र दास का जीवन राम मंदिर आंदोलन से गहरे रूप से जुड़ा हुआ था। उनकी सेवा और समर्पण ने उन्हें अयोध्या के इतिहास में अमिट स्थान दिया। वे अपनी निस्वार्थ भक्ति और दृढ़ संकल्प के लिए हमेशा याद किए जाएंगे। उनका जीवन भक्ति, सेवा और समर्पण का एक जीवंत उदाहरण है।

राम मंदिर निर्माण के समय भी उन्होंने कहा था, “मुझे नहीं पता कि मैं कब तक रामलला की सेवा कर पाऊंगा। लेकिन जब तक सांस है, मैं रामलला के प्रति अपनी सेवा जारी रखूंगा।” उनके इन शब्दों ने उनके दृढ़ संकल्प और भक्ति को पूरी तरह से उजागर किया।