Chenab Bridge: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शुक्रवार को कटरा से कश्मीर जाने वाली पहली वंदे भारत ट्रेन को हरी झंडी दिखाने वाले हैं। इसके साथ-साथ वे चेनाब ब्रिज का भी उद्घाटन करेंगे। अब इन दोनों ही प्रोजेक्ट्स को काफी खास माना जा रहा है और 130 सालों बाद एक सपना आखिरकार पूरा हो रहा है। अब इस वंदे भारत को इतना खास इसलिए माना जा रहा है क्योंकि ये शिवालिक और पीर पंजाल की चोटियों से होकर गुजरने वाली है, ऐसे में इसके निर्माण में कई चुनौतियां शामिल रहीं।
एक रेलवे अधिकारी ने पीटीआई से बात करते हुए इस बारे में कहा है कि सबसे पहले 19वीं सदी में डोगरा महाराजा प्रताप सिंह ने सपना देखा था, अब जाकर आजाद भारत में इतना महत्वपूर्ण निर्माण कार्य सफल होने जा रहा है। महाराजा हरि सिंह के पोते विक्रमादित्य सिंह भी इसे एक बड़ी उपलब्धि के रूप में देखते हैं। उन्होंने भी इस प्रोजेक्ट को लेकर अपनी उत्सुकता व्यक्त की है। उनका कहना है कि डोगरा के राजा का जो प्लान तो वो 130 साल बाद पूरा होने जा रहा है। कश्मीर तक रेलवे लाइन शुरू करने का पहला प्रस्ताव महाराजा प्रताप सिंह के कार्यकाल में आया था। यह सिर्फ जम्मू-कश्मीर के लोग नहीं बल्कि पूरे भारत के लिए गर्व का पल है। यह सपना पीएम मोदी द्वारा पूरा किया जा रहा है।
अब जानकारी के लिए बता दें कि दोगरा के राजा ने ही सबसे पहले ब्रिटिश इंजीनियरों को एक सर्वे करने के लिए कहा था, यह देखना था कि क्या कश्मीर तक कोई रेलवे रूट जा सकता है या नहीं। अब जब जम्मू-कश्मीर के कुछ स्पेशल डॉक्यूमेंट्स को देखते हैं तो पता चलता है कि सबसे पहले 1 मार्च 1892 को कश्मीर तक एक रेल लाइन शुरू करने का प्रस्ताव दिया गया था। इसके बाद जून 1898 में S R Scott Stratten and Co नाम की ब्रिटिश कंपनी को इस प्रोजेक्ट की जिम्मेदारी दी गई। पहली रिपोर्ट डीए एडम ने दी थी, उन्होंने जम्मू और कश्मीर के बीच में इलेक्ट्रिक रेल लाइन शुरू करने का सुझाव दिया था। दूसरा सुझाव 1902 में W J Weightman ने दिया जो चाहते थे कि कश्मीर को अबोट्टाबाद (अब पाकिस्तान में) से जोड़ दिया जाए। लेकिन दोनों ही सुझाव खारिज हो गए थे जिसके बाद कई सालों बाद चेनाब नदी पर रेल लाइन बनाने की बात हुई। इसे स्वीकार कर लिया गया। इसके बाद सबसे उदमपुर, रमसू और बनिहार में पावर स्टेशन बनाने की तैयारी हुई, लेकिन अंत में इसे भी रिजेक्ट कर दिया गया।
इसके बाद कुछ कारणों से अंग्रेजी हुकुमूत के दौरान इस प्रोजेक्ट पर फुल स्टॉप लग गया और फिर इंदिरा गांधी के टाइम में फिर इसकी नई शुरुआत हुई। उस समय जम्मू-उधमपुर-श्रीनगर रेलवे लाइन शुरू करने की तैयारी थी, उम्मीद जताई गई कि 5 साल के अंदर में 50 करोड़ खर्च इसे पूरा कर लिया जाएगा। लेकिन 13 सालों बाद भी सिर्फ 11 किलोमीटर का स्ट्रैच पूरा हो पाया जहां 19 टनल का निर्माण हुआ और 11 ब्रिज बनाए गए। उसमें भी 50 नहीं पूरे 300 करोड़ रुपये लग गए। इसके बाद उधमपुर-कटरा-बारामुला रेलवे प्रोजेक्ट की शुरुआत हुई, यहां भी 2500 करोड़ रुपये दिए गए। लेकिन मौसम की मार और पहाड़ी चुनौतियों की वजह से देरी होती रही, उस देरी ने इस प्रोजेक्ट की रकम को भी 43,800 करोड़ तक पहुंचा दिया। बाद में राष्ट्रीय सुरक्षा को देखते हुए इस प्रोजेक्ट को एक नेशनल प्रोजेक्ट घोषित कर दिया गया।
इसके बाद प्रोजेक्ट ने रफ्तार पकड़ी और 272 किलोमीटर में से 2019 किलोमीटर तो कुछ चरणों में पहले ही कमीशंड कर दिया गया। आखिरी स्ट्रैच जो कटरा से Sangaldan तक होगा, उसका काम भी फरवरी 2024 में पूरा हो गया। अब इस समय इस प्रोजेक्ट में 38 टनल हैं, 927 ब्रिज हैं। यहां भी सबसे खास तो चेनाब ब्रिज है जिसकी ऊंचाई चर्चा का विषय बनी हुई है। असल में यह पुल नदी तल से 359 मीटर ऊपर है, जो एफिल टॉवर से 35 मीटर ऊंचा है, जिससे यह दुनिया का सबसे ऊंचा रेलवे आर्क ब्रिज बन जाता है।
ये भी पढ़ें- श्रीनगर से कटरा के लिए वंदे भारत हो रही शुरू