Kashi Vishwanath Temple: उत्तर प्रदेश का वाराणसी यानी काशी दुनिया के सबसे प्राचीन नगरों में गिना जाता है। इसे बाबा भोलेनाथ की नगरी कहा जाता है। बनारस अपनी सांस्कृतिक विरासत, मंदिरों और घाटों के लिए प्रसिद्ध है। यहां हर गली, हर घाट किसी न किसी धार्मिक कहानी से जुड़ा हुआ है। इन्हीं में से एक है काल भैरव मंदिर। काशी के कोतवाल कहे जाने वाले काल भैरव का ये मंदिर धार्मिक और पौराणिक महत्व के कारण बेहद खास है। कहते हैं कि जब तक आप काल भैरव के दर्शन नहीं कर लेते, तब तक काशी विश्वनाथ के दर्शन भी अधूरे माने जाते हैं। ऐसे में आइए जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कथा और महत्व।

काल भैरव को शिव जी का रौद्र रूप माना जाता है। शास्त्रों में बताया गया है कि एक बार भगवान ब्रह्मा ने शिव जी का अपमान कर दिया था। इस पर शिव जी ने क्रोध में आकर अपने रौद्र रूप काल भैरव को उत्पन्न किया। काल भैरव ने अपने नाखून से ब्रह्मा जी का पांचवां सिर काट दिया। इस कारण उन पर ब्रह्म हत्या का दोष लग गया। इसके बाद शिव जी ने काल भैरव से कहा कि वे तीनों लोकों का भ्रमण करें और जब ब्रह्मा जी का सिर उनके हाथ से गिर जाए तो समझ लेना कि तुम्हें पाप से मुक्ति मिल गई है। काल भैरव तीनों लोकों में घूमते-घूमते काशी पहुंचे। जैसे ही वे गंगा तट पर पहुंचे, ब्रह्मा जी का सिर उनके हाथ से गिर गया। यहीं पर उन्हें पाप से मुक्ति मिली और तब से काल भैरव काशी में ही विराजमान हो गए।

काशी विश्वनाथ को जहां काशी का राजा माना जाता है, वहीं काल भैरव को काशी का कोतवाल कहा जाता है। इसका मतलब ये हुआ कि काशी आने वाले हर भक्त को पहले काल भैरव के दर्शन करने चाहिए, तभी उनकी यात्रा पूरी मानी जाती है। मान्यता है कि काल भैरव भक्तों के सारे पाप हर लेते हैं और उनकी मनोकामनाएं पूरी करते हैं।

वाराणसी के विशेश्वरगंज इलाके में स्थित काल भैरव मंदिर में रोजाना हजारों श्रद्धालु आते हैं। लेकिन रविवार और मंगलवार को यहां विशेष भीड़ रहती है। भक्त यहां आकर विधि-विधान से पूजा करते हैं, नारियल चढ़ाते हैं और काल भैरव बाबा से अपने दुख-दर्द से मुक्ति की प्रार्थना करते हैं। कहते हैं कि काल भैरव की कृपा से जीवन की सभी बाधाएं दूर होती हैं।

काशी विश्वनाथ मंदिर से थोड़ी दूरी पर स्थित काल भैरव मंदिर के दर्शन को काशी यात्रा का अभिन्न हिस्सा माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार अगर कोई श्रद्धालु काशी विश्वनाथ के दर्शन करता है लेकिन काल भैरव के दर्शन नहीं करता तो उसकी यात्रा अधूरी मानी जाती है। इसलिए यहां आने वाले श्रद्धालु काल भैरव के दर्शन कर आशीर्वाद लेते हैं और फिर बाबा विश्वनाथ के दर्शन कर यात्रा पूर्ण करते हैं।

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