Nirjala Ekadashi Vrat Katha 2025: निर्जला एकादशी का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। यह एदादशी सबसे कठिन और पुण्यदायी एकादशियों में से एक है। इस साल यह एकादशी जून 2025 को मनाई जाएगी। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने का विधान है। वहीं इस दिन पूजा करते समय व्रत कथा पढ़ना जरूरी माना जाता है। वर्ना पूजा अधूरी मानी जाती है। आइए जानते हैं इस व्रत कथा के बारे में…
विष्णु पुराण के अनुसार, भगवान श्री कृष्ण ने स्वयं पांडवों को एकादशी व्रत का महत्व बताया था। ऐसे में जब श्री कृष्ण पांडवों को ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी के फल और महत्व के बारे में बता रहे हैं, तो युधिष्ठिर ने कहा ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का क्या प्रभाव है। इस बारे में बताए। तब श्री कृष्ण ने कहा कि इस बारे में धर्मों और शास्त्र के ज्ञाता वेद व्यास से सुने।
भीम कहने लगे कि हे पितामह! मैं तो पहले ही कह चुका हूँ कि मैं भूख सहन नहीं कर सकता। यदि वर्षभर में कोई एक ही व्रत हो तो वह मैं रख सकता हूँ, क्योंकि मेरे पेट में वृक नाम वाली अग्नि है जिसके कारण मैं भोजन किए बिना नहीं रह सकता। भोजन करने से वह शांत रहती है, इसलिए पूरा उपवास तो क्या एक समय भी बिना भोजन किए रहना कठिन है। अत: आप मुझे कोई ऐसा व्रत बताइए जो वर्ष में केवल एक बार ही करना पड़े और मुझे स्वर्ग की प्राप्ति हो जाए। श्री व्यास जी कहने लगे कि हे पुत्र! बड़े-बड़े ऋषियों ने बहुत शास्त्र आदि बनाए हैं जिनसे बिना धन के थोड़े परिश्रम से ही स्वर्ग की प्राप्ति हो सकती है। इसी प्रकार शास्त्रों में दोनों पक्षों की एकादशी का व्रत मुक्ति के लिए रखा जाता है।
वेद व्यास जी ने कहा कि हे कुंती नंदन , ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी कहा जाता है। इस दिन दांत साफ करने के अलावा सूर्योदय तक एक बूंद भी जल ग्रहण नहीं किया जाता है। व्यास जी की बात सुनकर भीमसेन ने कहा कि, हे पितामह! भ्राता युधिष्ठिर, माता कुंती, द्रोपदी, अर्जुन, नकुल और सहदेव आदि सब एकादशी का व्रत करने को कहते हैं, परंतु महाराज मैं उनसे कहता हूँ कि भाई मैं भगवान की शक्ति पूजा आदि तो कर सकता हूँ, दान भी दे सकता हूँ परंतु भोजन के बिना नहीं रह सकता। इस पर व्यास जी कहने लगे कि हे भीमसेन! यदि तुम नर्क को बुरा और स्वर्ग को अच्छा समझते हो, तो प्रति मास की दोनों एकादशियों को अन्न मत खाया करो।
व्यास जी के वचन सुनकर भीमसेन नरक में जाने के नाम से भयभीत हो गए और कांपकर कहने लगे कि अब क्या करूं? मास में दो व्रत तो मैं कर नहीं सकता, हां वर्ष में एक व्रत करने का प्रयत्न अवश्य कर सकता हूँ। अत: वर्ष में एक दिन व्रत करने से यदि मेरी मुक्ति हो जाए तो ऐसा कोई व्रत बताइए। यह सुनकर व्यास जी कहने लगे कि वृषभ और मिथुन की संक्रांति के बीच ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की जो एकादशी आती है, उसका नाम निर्जला है। तुम उस एकादशी का व्रत करो। इस एकादशी के व्रत में स्नान और आचमन के सिवा जल वर्जित है। आचमन में छ: मासे से अधिक जल नहीं होना चाहिए अन्यथा वह मद्यपान के सदृश हो जाता है। इस दिन भोजन नहीं करना चाहिए, क्योंकि भोजन करने से व्रत नष्ट हो जाता है।
यदि एकादशी को सूर्योदय से लेकर द्वादशी के सूर्योदय तक जल ग्रहण न करे तो उसे सारी एकादशियों के व्रत का फल प्राप्त होता है। द्वादशी को सूर्योदय से पहले उठकर स्नान आदि करके ब्राह्मणों का दान आदि देना चाहिए। इसके पश्चात भूखे और सत्पात्र ब्राह्मण को भोजन कराकर फिर आप भोजन कर लेना चाहिए। इसका फल पूरे एक वर्ष की संपूर्ण एकादशियों के बराबर होता है।
व्यास जी कहने लगे कि हे भीमसेन! यह मुझको स्वयं भगवान ने बताया है। इस एकादशी का पुण्य समस्त तीर्थों और दानों से अधिक है। केवल एक दिन मनुष्य निर्जला रहने से पापों से मुक्त हो जाता है।