Shri Hit Premanand Govind Sharan Ji Maharaj: स्वामी प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज जी वृंदावन स्थित राधावल्लभ संप्रदाय के प्रसिद्ध गुरु हैं। वह लोगों को अष्टांग साधना और राधा-कृष्ण की भक्ति और अपने प्रवचनों के कारण काफी प्रसिद्ध है। प्रेमानंद महाराज के प्रवचन का कोई न कोई वीडियो वायरल होता रहता है। ऐसे ही एक वीडियो वायरल हो रहा है जिसमें एक व्यक्ति कर्म करने के बाद जप न करें, तो इसका फल क्या मिलेगा। इसके बारे में पूछता है। आइए जानते हैं प्रेमानंद महाराज जी से क्या उत्तर दिया…

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प्रेमानंद महाराज का एक वीडियो वारयल हो रहा है जिसमें सत्संग के दौरान एक व्यक्ति पूछता है कि भगवान श्री कृष्ण स्वयं गीता में कर्म ही पूजा है ही कहते हैं। देश के हितार्थ जब हम सैनिक राष्ट्र सेवा में व्यस्त रहते हैं या अपने अन्य कर्मों में तत्परता से संलग्न रहते हैं तो क्या नाम जप या गुरु सेवा से दूरी हमें भगवत प्राप्ति के लिए बाधक है?

भगवान श्री कृष्ण स्वयं भगवद्गीता में कहते हैं कि “कर्म ही पूजा है।” जब हम देशहित में, सैनिक या अन्य सेवा में तत्पर रहते हैं, तो क्या हमारा नाम-जप या गुरु-सेवा से दूरी भगवत् प्राप्ति में बाधक है? बिल्कुल नहीं।

भगवान कहते हैं: “सर्वदा सर्वकालेशु मम स्मरणं कुरु – युद्ध च”, यानी युद्ध करते समय भी मुझमें मन लगा कर युद्ध करो। अगर आप युद्धभूमि में मारे जाते हैं और भगवान का स्मरण नहीं करते, तो आपको स्वर्ग मिलेगा, लेकिन भगवत् प्राप्ति नहीं। वहीं, अगर आप “राधे–राधे” का नाम जपते हुए युद्ध करते हैं और वहां ही शरीर त्याग देते हैं, तो आपकी आत्मा सीधे भगवान के पास पहुंच जाती है। यही है कर्मयोग — कर्म तो कर्म है, लेकिन साथ में यदि स्मरण भी हो, तो वह कर्मयोग कहलाता है और इससे भगवत् प्राप्ति संभव होती है।

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राष्ट्र सेवा, गृहस्थ जीवन, व्यवसाय, या जो भी उत्तरदायित्व हो। जब हम तत्पर होकर कर्म करते हैं और नाम–जप या गुरु–भक्ति का साथ रखते हैं, तो हम सच्चे भाव से भगवान की पूजा कर रहे होते हैं। जैसे संत नरसी मेहता, पीपा जी आदि ने गृहस्थ की जिम्मेदारी निभाई और साथ ही प्रभु को स्मरण किया, उसी तरह यदि हम भी अपना धर्म–कर्तव्य पूरी निष्ठा और भगवान के प्रति प्रेम के साथ निभाएँ, तो हम भगवत् प्राप्ति को पा सकते हैं।

तो “मन डरता है कि जीवन व्यर्थ न जाए”—यह प्रश्न ही हमें भजन और स्मरण के पथ पर लेकर जाता है। यही चेतना हमें सत्संग और साधना की ओर ले जाती है, जिससे जीवन सार्थक बनता है और अंततः भगवत् का दर्शन होता है।

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