विश्व कप विजेता पूर्व भारतीय कप्तान महेंद्र सिंह धोनी को आईसीसी हॉल ऑफ फेम में शामिल किया गया है। इंटरनेशनल क्रिकेट काउंसिल (ICC) ने सोमवार 9 जून को यह घोषणा की। वह यह उपलब्धि हासिल करने वाले 11वें भारतीय हैं। उनसे पहले सुनील गावस्कर, सचिन तेंदुलकर, वीरेंद्र सहवाग, डायना एडुल्जी, अनिल कुंबले, बिशन सिंह बेदी, कपिल देव, राहुल द्रविड़, वीनू मांकड़ और नीतू डेविड को शामिल किया जा चुका है।
सर्वकालिक सबसे सफल कप्तानों में से एक माने जाने वाले एमएस धोनी ने भारत को 2007 टी20 विश्व कप, 2011 विश्व कप और 2013 चैंपियंस ट्रॉफी में जीत दिलाई। इसके अतिरिक्त, उनकी ही कप्तानी में 2009 में आईसीसी टेस्ट रैंकिंग के शीर्ष पर पहुंची थी। एमएस धोनी के हवाले से आईसीसी ने लिखा, ‘आईसीसी हॉल ऑफ फेम में शामिल होना सम्मान की बात है, जो दुनिया भर के क्रिकेटर्स के योगदान को पहचान देता है। ऐसे सर्वकालिक महान खिलाड़ियों के साथ अपना नाम जुड़ना एक शानदार अहसास है। यह कुछ ऐसा है जिसे मैं हमेशा संजो कर रखूंगा।’
आईसीसी ने कहा, ‘भारत के लिए 17,266 अंतरराष्ट्रीय रन, 829 शिकार (कैच और स्टम्प्स) और विभिन्न फॉर्मेट्स में 538 मैच खेलने वाले धोनी के आंकड़े न केवल उत्कृष्टता, बल्कि असाधारण स्थिरता और फिटनेस को दर्शाते हैं। धोनी उन 7 पूर्व खिलाड़ियों में हैं जिन्हें आईसीसी ने सोमवार 9 जून को हॉल ऑफ फेम में शामिल किया। अन्य खिलाड़ियों में ऑस्ट्रेलिया के मैथ्यू हेडन, दक्षिण अफ्रीका के पूर्व कप्तान ग्रीम स्मिथ, न्यूजीलैंड के पूर्व कप्तान डेनियल विटोरी, दक्षिण अफ्रीका के हाशिम अमला, पाकिस्तानी महिला क्रिकेट टीम की पूर्व कप्तान सना मीर और इंग्लैंड की सारा टेलर शामिल हैं।
जब धोनी 2004 में राष्ट्रीय टीम में शामिल हुए, तो शायद ही किसी ने सोचा होगा कि 23 वर्षीय धोनी विकेटकीपर-बल्लेबाज की भूमिका को किस तरह से नए आयाम देंगे। यह स्पष्ट था कि यह प्रतिभा का प्रश्न नहीं था, बल्कि यह था कि वह अपने पूर्ववर्तियों की तुलना में कितने अलग दिखाई दिए।
उनके ग्लव्स के काम ने परंपरा को तोड़ दिया। स्टम्प के पीछे धोनी की तकनीक अपरंपरागत थी, फिर भी असाधारण रूप से प्रभावी थी। उन्होंने विकेटकीपिंग को अपने आप में एक कला बना दिया, डिफ्लेक्शन से रन-आउट करना, पलक झपकते ही स्टम्पिंग करना और अपने अंदाज में कैच लपकना।
बल्ले से उन्होंने विकेटकीपर-बल्लेबाज की भूमिका में जबरदस्त ताकत और पावर-हिटिंग का इस्तेमाल किया, जो परंपरागत रूप से निचले क्रम के बल्लेबाजों के लिए आरक्षित था। ऐसे समय में जब भारतीय विकेटकीपर्स से सुरक्षित खेलने की अपेक्षा की जा रही थी, धोनी शाब्दिक और लाक्षणिक दोनों ही रूपों में आक्रामक बल्लेबाजी के लिए उतरे।
एमएस धोनी के अंतरराष्ट्रीय करियर की शुरुआत बहुत अच्छी नहीं रही। दिसंबर 2004 में वह अपने वनडे डेब्यू में शून्य पर आउट हो गया, लेकिन उन्हें अपनी छाप छोड़ने में ज्यादा समय नहीं लगा। अप्रैल 2005 में विशाखापत्तनम में पाकिस्तान के खिलाफ बल्लेबाजी क्रम में ऊपर आने पर उन्होंने 123 गेंद में 148 रन की तूफानी पारी खेलकर धमाल मचा दिया, एक ऐसी पारी जिसने भारत और दुनिया को उनके आगमन की सूचना दी।
कुछ ही महीनों बाद अक्टूबर में, धोनी ने एक और अविस्मरणीय प्रदर्शन किया। बल्लेबाजी क्रम में फिर पदोन्नत होने पर इस बार जयपुर में श्रीलंका के खिलाफ, उन्होंने 145 गेंद में 183 रन की नाबाद तूफानी पारी खेली। इसमें उनके 15 चौके और 10 छक्के शामिल थे। यह पारी आज भी पुरुष वनडे मैच में किसी विकेटकीपर का बनाया गया सर्वोच्च व्यक्तिगत स्कोर है। वह उस समय सफल रन चेज में सर्वोच्च स्कोर भी थे। इससे धोनी के फिनिशर बनने की झलक मिलती है।
इस प्रकार भारतीय क्रिकेट के सबसे प्रतिष्ठित करियर में से एक की कहानी शुरू हुई। एक ऐसा सफर जो अपरंपरागत प्रतिभा, अदम्य धैर्य और सबसे ज्यादा जरूरी होने पर अच्छा प्रदर्शन करने की अद्भुत क्षमता से चिह्नित है।