Bihar Politics: बिहार विधानसभा चुनाव इस साल के आखिरी में होने हैं। इससे पहले चुनाव आयोग ने वोटर लिस्ट में स्पेशल इंटेंसिव रिविजन यानी SIR को लेकर दिशानिर्देश जारी किए हैं। इसको लेकर विधानसभा के नेता विपक्ष तेजस्वी यादव ने चुनाव आयोग की मंशा पर सवाल उठाए हैं। तेजस्वी ने पूछा कि जिस वोटर लिस्ट से 2024 के लोकसभा चुनाव हुए थे, उसमें एक साल के अंदर संशोधन की क्या जरूरत है?
RJD नेता तेजस्वी यादव का कहा, “2024 का लोकसभा चुनाव इसी मतदाता सूची के आधार पर हुआ था, जिसमें जनता ने वोट दिया और केंद्र में NDA की सरकार बनी। अब अगर यही सूची गलत थी, तो क्या इसका मतलब यह है कि उस समय नियुक्त सहायक निर्वाचन अधिकारियों ने गलत सूची तैयार की थी? क्या इससे उस सूची के आधार पर बनी सरकार की वैधता पर सवाल नहीं उठता?”
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राज्य में नेता विपक्ष तेजस्वी यादव ने वोटर लिस्ट में बदलाव के समय क्राइटीरिया को बेहद संदिग्ध और चिंताजनक बताया है। उन्होंने आरोप लगाया कि यह कवायद केंद्र के इशारे पर की जा रही है क्योंकि बीजेपी और जेडीयू विधानसभा चुनावों से पहले घबरा गए हैं। तेजस्वी ने कहा कि पिछले ऐसे वोटर लिस्ट के संशोधनों में लगभग दो साल लग गए, जबकि अभी की प्रक्रिया मॉनसून के दौरान चंद हफ्तों में होनी है। इस दौरान तेजस्वी ने यह भी कि बिहार का 73 प्रतिशत हिस्सा मॉनसून के वक्त बाढ़ प्रभावित रहता है।
आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने कहा है कि क्या सरकारी कर्मचारियों और नागरिकों को बाढ़ से जान बचानी चाहिए या चुनाव आयोग के लिए दस्तावेज़ इकट्ठा करने चाहिए। आरजेडी नेता ने आगे आरोप लगाया कि नई प्रक्रिया गरीबों, दलितों, अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी), अल्पसंख्यकों और युवा मतदाताओं को निशाना बनाने वाली है। तेजस्वी ने दावा किया कि आधार और मनरेगा पहचान पत्र को भी मतदाता सूची से जोड़ने की मौजूदा कवायद के बीच वैध प्रमाण के रूप में स्वीकार नहीं किया जा रहा है ताकि दोहराव को रोका जा सके।
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चुनाव आयोग के निर्देशों के अनुसार प्रत्येक मौजूदा वोटर को एक अलग गणना फॉर्म जमा करना होगा। 1 जनवरी, 2003 के बाद मतदाता सूची में शामिल होने वाले लोगों को अपनी नागरिकता का प्रमाण भी देना होगा। चुनाव आयोग ने कहा कि ‘पिछले 20 वर्षों के दौरान, बड़े पैमाने पर नाम जोड़ने और हटाने के कारण मतदाता सूची में महत्वपूर्ण बदलाव हुए हैं’ और ‘तेजी से शहरीकरण और आबादी का एक जगह से दूसरी जगह लगातार पलायन हुआ है। चुनाव आयोग ने कहा कि यह ‘विशेष गहन संशोधन’ अंततः सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों (यूटी) को कवर करेगा।
चुनाव आयोग ने कहा है कि जो भी वोटर फॉर्म 25 जुलाई तक प्राप्त नहीं होंगे, उन्हें सूची से हटा दिया जाएगा। नाम हटाए जाने पर 1 अगस्त से 1 सितंबर तक विवाद किया जा सकता है। हालांकि चुनाव आयोग ने अभी तक उन मतदाताओं की सटीक संख्या नहीं बताई है, जिन्हें नागरिकता का प्रमाण प्रस्तुत करना होगा, लेकिन 2003 से बिहार में लगभग 3 करोड़ मतदाताओं को मतदाता सूची में जोड़ा गया है। चुनाव आयोग ने कहा कि पासपोर्ट, जन्म प्रमाण पत्र, अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति प्रमाण पत्र जैसे दस्तावेजों के अलावा, 1 जनवरी, 2003 तक बिहार की मतदाता सूची में माता-पिता के नाम का विवरण अपने आप में पर्याप्त दस्तावेज माना जाएगा।
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तेजस्वी के अनुसार, 40 वर्ष से कम आयु के लगभग 4.8 करोड़ मतदाताओं ने 2003 के बाद मतदान के लिए पंजीकरण कराया है। अब उन्हें महीने के भीतर अपनी या अपने माता-पिता की नागरिकता साबित करनी होगी। इनमें से लगभग 4% यानी 39 से 40 वर्ष की आयु के लोगों को अपनी नागरिकता की जानकारी देनी होगी, जो कि 1 जुलाई 1987 से पहले पैदा हुए है। इसके अलावा लगभग 85 प्रतिशत 20 से 38 वर्ष की आयु के मतदाता को कम से कम एक माता-पिता की नागरिकता के दस्तावेज़ प्रस्तुत करने होंगे, जबकि 11%, को दोनों माता-पिता की नागरिकता के दस्तावेज़ प्रस्तुत करने होंगे।
विपक्ष के नेता ने यह भी बताया कि हालांकि चुनाव आयोग ने मतदाता पंजीकरण के लिए 11 दस्तावेजों को वैध बताया है लेकिन केवल तीन – जन्म प्रमाण पत्र, मैट्रिकुलेशन प्रमाण पत्र और जाति प्रमाण पत्र अपेक्षाकृत सामान्य हैं। तेजस्वी ने चेतावनी दी कि संशोधन से बड़ी संख्या में मतदाता वंचित हो सकते हैं, खास तौर पर सबसे कमजोर समूहों के मतदाताओं को नुकसान होगा। उन्होंने चुनाव आयोग से इस कदम पर पुनर्विचार करने की मांग की।
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इस मामले में जेडीयू प्रवक्ता नीरज कुमार ने इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में कहा कि यह चुनाव आयोग का नियमित काम है और विपक्षी दलों का इस बारे में राजनीतिक बयान देना बहुत गैरजिम्मेदाराना है। मतदाता सूची का पुनरीक्षण सभी के लिए फायदेमंद है, यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया में अधिक लोगों को शामिल करने का अवसर है। दूसरी ओर प्रदेश बीजेपी प्रवक्ता मनोज शर्मा ने कहा कि चुनाव आयोग ने इतने बड़े देश में सफलतापूर्वक चुनाव कराकर अपनी क्षमता का परिचय दिया है, और बड़े पैमाने पर लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के लिए वैश्विक उदाहरण स्थापित किया है।
बीजेपी नेता ने कहा कि जो पार्टियां फर्जी वोटर्स और वोटिंग पर निर्भर रहे हैं, उनके लिए चुनाव आयोग ने बूथ कैप्चरिंग की घटनाओं पर पहले ही रोक लगा दी है और अब वह फर्जी मतदान पर लगाम लगाने के लिए काम कर रहा है। इसलिए चुनाव आयोग की विश्वसनीयता पर सवाल उठाना पूरी तरह से अनुचित है।
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