Bihar Special Intensive Revision: बिहार में वोटर लिस्ट के स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन के लिए एक कारण लगातार पलायन को बताया गया। दिल्ली में रह रहे प्रवासियों को या तो यह नहीं पता चला कि उन्हें फिर से नामांकन की जरूरत है या अगर पता भी है तो वे चुनाव आयोग की तरफ से मांगे जा रहे 11 डॉक्यूमेंट्स का इंतजाम कैसे करेंगे।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, बेगूसराय के रहने वाले अंकित इस वक्त पुरानी दिल्ली के सदर बाजार में लोडर का काम करते हैं। अंकित ने अपना फोन दिखाते हुए कहा, ‘मैंने अभी तक नहीं सुना और मैं तो मोबाइल पर रोज न्यूज देखता हूं।’ अंकित विधानसभा चुनाव से पहले अपने घर जाने की प्लानिंग कर रहे हैं। हालांकि, उनके पास केवल आधार कार्ड और पहचान पत्र ही है। चुनाव आयोग की तरफ से मांगे गए डॉक्यूमेंट में जन्म स्थान का प्रमाण भी मांगा गया है।
अंकित ने कहा, ‘जो अंगूठा छाप हैं, उनके पास ऐसे डॉक्यूमेंट कैसे होंगे? मैंने तो कभी जन्म प्रमाण पत्र भी नहीं बनवाया। मुफ्त राशन से लेकर अस्पतालों में इलाज तक, हर चीज के लिए अधिकारी आधार कार्ड मांगते हैं। अब आप कह रहे हैं कि आधार कार्ड काम नहीं करेगा। ये कैसे मुमकिन है।’ दिल्ली और पड़ोसी नोएडा के लेबर चौकों, बाजारों और कॉलोनियों में बिहारी प्रवासियों की संख्या ज्यादा है। अंकित की तरह ही और भी कई लोग हैं।
बिहार में वोटर लिस्ट के रिवीजन के खिलाफ क्यों है विपक्ष
चुनाव आयोग ने कहा है कि माइग्रेंट वोटर अपने फॉर्म ऑनलाइन जमा कर सकते हैं और बूथ लेवल के अधिकारियों को निर्देश दिया गया है कि वे उनके परिवारों को इसकी सूचना दें। हालांकि, बहुत से लोग इंटरनेट का इस्तेमाल करने में पारंगत नहीं हैं और अगर वे जानते भी हैं, तो उन्हें डॉक्यूमेंट्स की समस्या का सामना करना पड़ता है।
सदर बाजार के मिठाई पुल पर बिहार के भागलपुर जिले से आए 29 साल के दलित अमरजीत कुमार का दावा है कि हाल ही में चोरी में उनके सारे दस्तावेज खो गए। भागलपुर के एक गांव में एक छोटा सा कच्चा घर उनके परिवार की एकमात्र संपत्ति है और कुमार अपनी सारी कमाई घर भेजने की कोशिश करते हैं। इसलिए दिल्ली में, वह फुटपाथ पर सोते हैं। उन्होंने कहा, ‘किराए का कमरा बहुत महंगा है। एक महीने पहले फुटपाथ से ही मेरे सारे डॉक्यूमेंट्स वाला बैग चोरी हो गया था।’
नोएडा के सेक्टर 58 में मौजूद लेबर चौक पर बिहार के अररिया जिले से आए 30 साल के दलित मिथिलेश कुमार की सुबह मुश्किलों भरी रही, क्योंकि उन्हें कोई छोटा-मोटा काम नहीं मिल रहा था। वह राजमिस्त्री घरों में रंग-रोगन का काम करते हैं। मिथिलेश ने एसआईआर अभियान के बारे में सुना है, लेकिन आगे क्या करें, इसे लेकर वह भी असमंजस में हैं। उन्होंने कहा, ‘मेरी पत्नी ने बताया कि एक अधिकारी घर आए थे। लेकिन वह यह नहीं बता पाए कि क्या करना है और मैं यहां रहते हुए फॉर्म कैसे भर सकता हूं।’
कुमार ने कहा, ‘इतनी जल्दी क्यों। मेरी पत्नी ने बताया कि अधिकारी ने कहा था कि ये काम जल्दी करना होगा। इन कामों के लिए लोगों को समय देना चाहिए। हर चीज के लिए अधिकारी रिश्वत चाहते हैं। मेरे पास इसके लिए पैसे नहीं हैं। मुश्किल लग रहा है।’ हालांकि, उन्हें इस बात का भी डर सता रहा है कि उनका नाम वोटर लिस्ट से कट ना जाए। मिथिलेश ने कहा, ‘फिर मैं कैसे साबित करूंगा कि मैं कौन हूं और कहां से हूं? वोट देना जरूरी है।’ बिहार वोटर लिस्ट रिवीजन को लेकर EBC-अल्पसंख्यक ही नहीं, ऊंची जातियों में भी बेचैनी है। पढ़ें पूरी खबर…