Rajasthan News: सेब के पेड़ ज्यादातर जम्मू-कश्मीर और हिमाचल प्रदेश जैसे पहाड़ी राज्यों में पाए जाते हैं। यहां की जलवायु ठंडी होती है, लेकिन इसके फल अब राजस्थान में भी आ रहे हैं। झुलसा देने वाली गर्मी वाले राजस्थान में अब एक नहीं बल्कि कई जगह पर सेब के बाग दिखने लगे हैं। खास तौर पर सीकर और झुझुनू जिले में सेब के बाग हैं। सीकर के बेरी गांव की संतोष खेदड़ ने बताया कि साल 2015 में गुजरात में राष्ट्रीय नवाचार फाउंडेशन से उन्हें मिला सेब का एक पौधा मिला था और उसकी वजह से खेत की दशा और दिशा दोनों ही बदल गई।

किसान संतोष ने बताया कि अब कमाल यह है कि हर एक मौसम में छह हजार किलो से ज्यादा सेब की पैदावार हो रही है। यह राजस्थान जैसे राज्य के लिए एक बहुत ही बड़ी बात मानी जा रही है। इस किसान परिवार ने अपने 1.25 एकड़ खेत में नींबू, अमरूद के बाग लगा रखे हैं। इस परिवार को इस बात पर शक था कि रेगिस्तान की इस गर्मी में सेबों की पैदावार हो भी पाएगी।

संतोष ने याद करते हुए भाषा को बताया कि हमारे पड़ोसियों को भी लगता था कि ऐसी गर्मी में सेब के बाग का प्लान कामयाब नहीं होगा। राजस्थान राज्य के बाकी हिस्सों की तरह इन दोनों जिलों में भी बहुत गर्मी पड़ती है। टेंपरेचर भी 40 डिग्री तक पहुंच जाता है। हालांकि, इसके बाद भी संतोष ने ठान लिया और वह प्लानिंग पर आगे बढ़ीं। संतोष ने कहा कि हमने पौधे को पानी दिया जरूरत के मुताबिक खाद का इस्तेमाल किया और एक साल के बाद इस जोखिम का परिणाम मिला।

राजस्थान में किन मामलों को लेकर नाराजगी जता रहा गुर्जर समुदाय

संतोष ने आत्मविश्वास के साथ कहा कि हम पौधों पर सेब लगते देख कर हैरान हो गए। दूसरे साल में करीब 40 किलो सेब निकले। इस परिवार ने ग्राफ्टिंग तकनीक का इस्तेमाल करते हुए अपने बगीचे में सेब के पौधों की संख्या 100 तक कर दी। संतोष के बेटे राहुल ने कहा कि हमारे पास राजस्थान ऑर्गेनिक सर्टिफिकेशन एजेंसी से आर्गेनिक खेती का सर्टिफिकेट है, इसलिए हम अब अपने सेब 150 रुपये किलो के हिसाब से बेचते हैं। वह इस सफलता का पूरा श्रेय सेब की किस्म एचआरएमएन-99 को देते हैं। इसको खास तौर पर हाई लेवल टेंपरेचर को झेलने के लिए विकसित किया गया है।

एग्रीकल्चर सब्जेक्ट के स्टूडेंट राहुल ने बताया कि यह किस्म उन इलाकों में भी फल फूल सकती है, जहां पर गर्मियों में तापमाम 40 डिग्री से ज्यादा होता है। इस किस्म के पौधों को ज्यादा पानी की जरूरत भी नहीं होती है। हॉर्टिकल्चर के एक्सपर्ट ने कहा कि सेब के पौधों को बड़े पैमाने पर न्यूनतम सिंचाई की जरूरत होती है। हॉर्टिकल्चर एक्सपर्ट मदन लाल जाट ने बताया कि जब सेब का पौधा पांच साल का हो जाता है तब तक उसे हर दो हफ्ते में एक बार पानी की जरूरत होती है। उन्होंने बताया कि फरवरी में फूल आने शुरू हो जाते हैं और जून तक सेब पककर तैयार हो जाते हैं।

कभी किसान संतोष की कोशिशों पर संशय करने वाले लोग अपनी उनकी कामयाबी से काफी कुछ सीखने के लिए बेचैन हैं। उन्होंने गर्व से मुस्कुराते हुए कहा कि जो लोग मुझ पर हंसते थे, अब वह पौधे मांग रहे हैं। उनकी कामयाबी को देखकर कटराथल गांव के एक किसान ने भी 50 सेब के पेड़ लगाए हैं। एक्सपर्ट का मानना है कि यह एक बड़े बदलाव की शुरुआत है। जाट ने बताया कि एक दशक पहले बाड़मेर में किसानों ने खजूर और अनार उगाना शुरू किया था। उन्होंने कहा कि अब चित्तौड़गढ़ और भीलवाड़ा में भी स्ट्रॉबेरी की खेती हो रही है। उन्होंने कहा कि अगले पांच साल में राज्य के और इलाकों में सेब की खेती शुरू हो सकती है। टीचर का कहना माना, फिर भी हुई बच्ची की पिटाई