Pradhan Mantri Awas Yojana Rajasthan: राजस्थान के सलूम्बर जिले के मोरेला गांव में रहने वाले आदिवासी व्यक्ति 52 साल के पेमा मीणा ने केंद्र सरकार की प्रधानमंत्री आवास योजना का फायदा लेने के लिए अप्लाई किया था। पेमा मीणा अपने सपनों का पक्का घर बनाने के लिए पीएम आवास योजना का फायदा लेना चाहते थे। पेमा मीणा को यह नहीं पता था कि उनकी ‘अलग’ रह रही पत्नी को पीएम आवास योजना के तहत प्राइमरी बेनिफिशियरी माना जाएगा और उन्हें ही योजना के तहत पैसा मिलेगा। पेमा को उनकी पत्नी ने आदिवासियों के रिवाज ‘नाता प्रथा’ के जरिए कुछ ही महीनों पहले तलाक दिया है।
द इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में पेमा मीणा ने बताया, “मेरी पूर्व पत्नी ने साल 2024 की शुरुआत में ही मुझे छोड़कर चली गई थी लेकिन आधार कार्ड जैसे आधिकारिक डॉक्यूमेंट्स आज भी उसे मेरी पत्नी दिखाते हैं।” पेमा बताते हैं कि वह इस समय रिकॉर्ड में नाम हटवाने के लिए सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगा रहे हैं।
इस समस्या का सामना कर रहे पेमा मीणा राजस्थान के आदिवासी इलाके में पहले नहीं हैं। और भी कई लोग इस समस्या का सामना कर रहे हैं। रिपोर्ट में सरकारी अधिकारियों के अनुसार, बताया गया है कि आदिवासियों का ‘नाता – प्रथा’ रिवाज एक शादीशुदा महिला को अन्य पुरुष के साथ रहने की इजाजत देता है। जरूरी नहीं के अन्य वह उसका पति ही हो। इसी वजह से राजस्थान के आदिवासी इलाकों में पीएम आवास योजना के तहत स्वीकृत पीएम आवास घरों के एक बड़े हिस्से का काम रुक गया है।
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‘नाता – प्रथा’ रिवाज का पालन खासतौर पर राजस्थान के सलूम्बर बांसवाड़ा, डुंगरपुर, प्रतापगढ़, उदयपुर, सिरोही, राजसामंद, पाली और चित्तौड़गढ़ के आदिवासी इलाकों में किया जाता है। इस प्रथा के तहत महिला गांव की पंचायत के सामने औपचारिक रूप से यह ऐलान कर सकती है कि वह अपने पति को छोड़कर किसी अन्य पुरुष के साथ रहने जा रही है।
सरकारी सूत्रों के अनुसार, इन क्षेत्रों में स्वीकृत 1.58 लाख मकानों में से लगभग 5-10% का निर्माण कार्य इस व्यापक रूप से प्रचलित प्रथा के कारण रुका हुआ है। यह बात ऐसे समय में विशेष महत्व रखती है जब राजस्थान सरकार इस योजना के तहत अधिक पात्र लाभार्थियों की पहचान करने के लिए अभियान चला रही है।
द इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में सलूंबर जिले की झल्लारा पंचायत समिति के खंड विकास अधिकारी दिनेश पाटीदार कहते हैं कि उन्हें पीएम आवास योजना के तहत टागरेट पूरे करने होते है और आदिवासी इलाको में यह रिवाज समस्या बन गया है। वो कहते हैं कि इस समस्या के बारे में उन्होंने राज्य सरकार को भी पत्र लिखा है।
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दिनेश पाटीदार आगे बताते हैं कि उनके पास कई ऐसे मामले आए हैं, जब नाता तोड़ने वाली महिलाओं के पूर्व पतियों ने दावा किया कि वे तलाकशुदा हैं और इस योजना के तहत मिलने वाली वित्तीय मदद के हकदार हैं। वो आगे कहते हैं, “हालांकि, तलाक के आदेश के बिना हमारे हाथ बंधे हुए हैं। इन क्षेत्रों में कई घर इसी वजह से अधूरे हैं और उच्च अधिकारी अभी भी इसका समाधान नहीं निकाल पाए हैं।”
द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत महिलाएं प्राथमिक लाभार्थी हैं। इसका मतलब ये है कि पीएम आवास योजना के तहत जो घर बनाया जा रहा है, महिला उसकी एकमात्र मालिक या संयुक्त मालिक होनी चाहिए। इस योजना में पुरुषों को तब लाभ मिलता है, जब परिवार में कोई अडल्ट महिला न हो।
साल 2011 की जनगणना के अनुसार, राजस्थान की जनसंख्या में करीब 13.48% आदिवासी हैं। सलूंबर के मातासुल गांव के सरपंच पप्पूलाल मीणा का मानना है कि पेमा जैसे मामले असामान्य नहीं हैं। वो कहते हैं कि चूंकि कई आदिवासी गरीब और अशिक्षित हैं, इसलिए वे समस्या के समाधान के लिए कानूनी सहारा नहीं लेते हैं।
राजस्थान सरकार का डेटा बताता है कि साल 2016-17 से 2021-22 के बीच पीएम आवास योजना के तहत स्वीकृत किए गए घरों में से करीब 98.4% पूरे हो चुके हैं। अधिकारी बताते हैं कि उस अवधि के दौरान स्वीकृत 17,15,249 घरों में से सिर्फ एक छोटा सा हिस्सा अभी भी अधूरा है।अधिकारियों का दावा है कि उन्होंने केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय को लिखा है, लेकिन समस्या को “गंभीरता से नहीं लिया गया है”।
समाधान में जनजातीय रीति-रिवाजों को ध्यान में रखने की बात करते हुए एक अधिकारी कहते हैं कि यह समस्या सिर्फ राजस्थान के आदिवासी इलाकों में है लेकिन लेकिन टारगेट पूरे न होने पर हमें उत्तरदायी ठहराया जाता है। हमने केंद्र सरकार को पत्र लिखा है और बैठकों में यह विषय उठाया है लेकिन उन्होंने हमारी बात को गंभीरता से नहीं लिया।
जब इस मसले पर द इंडियन एक्सप्रेस ने केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय से संपर्क किया तो उन्होंने कहा कि उन्हें इस मामले की जानकारी नहीं है। हालांकि समाधान में देरी होते देख, जिले के अधिकारी इन मुद्दों को गांव स्तर पर सुलझाने का प्रयास कर रहे हैं।
एक BDO ने कहा कि हम उस पंचायत से संपर्क करते हैं जिसका उस क्षेत्र पर काफी प्रभाव है और उनसे उस महिला को बुलाने के लिए कहते हैं जिसने ‘नाता’ किया है और जिसके खाते में पैसा ट्रांसफर किया गया है।
वह आगे कहते हैं कि हम उस पर दबाव डालकर उसे अपने पूर्व पति के खाते में पैसे ट्रांसफर करने के लिए मजबूर करते हैं। इसमें लगभग एक महीने का समय लगता है और आम तौर पर कई मीटिंग होती हैं, लेकिन यह आम तौर पर सफल होता है। लेकिन इसके अलावा कोई समाधान नहीं है।
रिपोर्ट में बताया गया है कि राजस्थान में कई लाभार्थी असमंजस में हैं। इन लाभार्थियों में 62 साल की हुंडी मीणा भी हैं। वह सलूम्बर के माटासुल में रहती हैं। हुंडी मीणा के 30 साल के बेटे रमेश की अक्टूबर 2023 में मौत हो गई थी। रमेश की पत्नी शांता (25 साल) पड़ोस के गांव में दूसरे युवक के पास रहने के लिए चली गई। अब हुंडी रमेश और शांता के तीन नाबालिग बच्चों का ख्याल रखती हैं।
अब क्योंकि पीएम आवास योजना के तहत शांता प्राइमरी बेनिफिशियरी थीं, इसलिए पीएम आवास योजना के तहत 15000 रुपये की पहली किश्त उनके खाते में गई। हुंडी बताती हैं कि सरपंच की मदद से वह आगे की किश्तें शांता के अकाउंट में जाने से रोकने में सफल रहीं लेकिन अधिकारियों ने योजना में उनका नाम नहीं जोड़ा।
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