यदि वैश्विक तापमान में दो डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होती है तो हिंदू कुश हिमालय के ग्लेशियर की बर्फ सदी के अंत तक 75 फीसद तक कम हो सकती है। हिंदू कुश पर्वत के ये ग्लेशियर कई नदियों का उद्गम स्थल हैं और ये नदियां दो अरब लोगों की आजीविका का साधन बनती हैं। एक नए अध्ययन में ये जानकारी सामने आई है।
विज्ञान पत्रिका ‘साइंस’ में प्रकाशित अध्ययन में कहा गया है कि यदि देश तापमान वृद्धि को पूर्व-औद्योगिक स्तर से 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित कर सकें तो हिमालय और काकेशस पर्वत में ग्लेशियर की 40-45 फीसद बर्फ संरक्षित रहेगी। अध्ययन में पाया गया कि इसके विपरीत अगर इस सदी के अंत तक दुनिया 2.7 डिग्री सेल्सियस गर्म होती है, तो वैश्विक स्तर पर ग्लेशियर की बर्फ का केवल एक-चौथाई हिस्सा ही बचेगा।
अध्ययन में कहा गया है कि मानव समुदायों के लिए सबसे अहम ग्लेशियर क्षेत्र जैसे कि यूरोपीयन आल्प्स, पश्चिमी अमेरिका और कनाडा की पर्वतशृंखलाएं व आइसलैंड विशेष रूप से बुरी तरह प्रभावित होंगे। दो डिग्री सेल्सियस तापमान पर ये क्षेत्र अपनी लगभग सारी बर्फ खो सकते हैं और 2020 के स्तर पर केवल 10-15 फीसद ही बर्फ बची रह पाएगी।
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स्कैंडिनेविया पर्वत का भविष्य और भी भयावह हो सकता है, क्योंकि इस स्तर के तापमान में वहां ग्लेशियर पर बर्फ बचेगी ही नहीं। अध्ययन में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि 2015 के पेरिस समझौते द्वारा निर्धारित 1.5 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य तक तापमान को सीमित करने से सभी क्षेत्रों में कुछ ग्लेशियर बर्फ को संरक्षित करने में मदद मिलेगी। विश्व के नेता शुक्रवार से शुरू हुए ग्लेशियरों पर पहले संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के लिए ताजिकिस्तान की राजधानी दुशांबे में एकत्रित हो रहे हैं। इसमें 50 से अधिक देश भाग ले रहे हैं, जिनमें 30 देशों के मंत्री स्तरीय या उच्च स्तर के अधिकारी शामिल होंगे।
एशियाई विकास बैंक के उपाध्यक्ष यिंगमिंग यांग ने दुशांबे में कहा कि पिघलते ग्लेशियर अभूतपूर्व पैमाने पर जीवन को खतरे में डाल रहे हैं, जिसमें एशिया में दो अरब से अधिक लोगों की आजीविका भी शामिल है। ग्रह को गर्म करने वाले उत्सर्जन को कम करने के लिए स्वच्छ ऊर्जा को अपनाना ही ग्लेशियरों के पिघलने की गति को धीमा करने का सबसे प्रभावी तरीका है। व्रीजे यूनिवर्सिटी ब्रसेल में अध्ययन के सह-प्रमुख लेखक हैरी जेकोलारी ने कहा कि हमारे अध्ययन से यह स्पष्ट हो गया है कि तापमान में मामूली वृद्धि भी मायने रखती है। आज हम जो चयन करेंगे, उसका असर सदियों तक रहेगा और यह तय करेगा कि हमारे ग्लेशियरों का कितना हिस्सा संरक्षित किया जा सकता है।