मौसम में उतार-चढ़ाव के कारण अनियमित बारिश, बदलते प्राकृतिक चक्र और बढ़ते आधुनिकीकरण जैसे कई कारणों से वसई क्षेत्र के पारंपरिक व्यवसाय अब संकट का सामना कर रहे हैं। खास तौर पर नमक उत्पादन, ईंट भट्टे, मछली पालन, चावल और फूलों की खेती जैसे पारंपरिक व्यवसायों को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है।

वसई को पारंपरिक व्यवसायों में अग्रणी माना जाता है। इस क्षेत्र के स्थानीय लोगों ने कई पारंपरिक व्यवसायों को प्रमुखता दी है। हालांकि, मौजूदा बदलते दौर में यही व्यवसाय मुश्किलों का सामना कर रहे हैं।

वसई के हर पारंपरिक व्यवसाय ने अलग-अलग स्तरों पर अपनी अलग पहचान बनाई है। इसमें नमक उत्पादन का विशेष योगदान है। वसई क्षेत्र में वसई तालुका में वनरशी मीठागर, अगरवती सालम, नवमुख, हीरागर, शेंखई, गुरुप्रसाद, जूना वाचक जैसी 30 से 35 नमक की खदानें थीं। इन नमक खदानों से उत्पादित नमक मुंबई, गुजरात, नासिक, सतारा, सांगली

पिछले कुछ सालों से नमक उत्पादकों को कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। नदियों के बढ़ते प्रदूषण ने नमक उत्पादन के लिए ज़रूरी पानी की लवणता को नष्ट कर दिया है। इसके अलावा, मज़दूरों की कमी, उत्पादन लागत, बाज़ार में मंदी, बाढ़ की स्थिति, अनियमित बारिश और कई अन्य कारकों ने व्यापार पर बड़ा असर डालना शुरू कर दिया है।

इस साल भी नमक उत्पादकों को सीजन खत्म होने से पहले ही अपना कारोबार बंद करना पड़ा। खास तौर पर मई की गर्मी में आधे से ज्यादा उत्पादन की कटाई हो जाती है। इस साल प्री-मानसून बारिश ने नमक उत्पादकों को भारी नुकसान पहुंचाया है। लगातार घाटे के कारण नमक उत्पादन धीरे-धीरे बंद होने की कगार पर पहुंच गया है। मछली पालन क्षेत्र में भी यही स्थिति है।