Israel-Iran Conflict: इजरायल और ईरान का संघर्ष लगातार बढ़ता ही जा रहा है। इजरायल ने अली खामेनेई के राजनीतिक सलाहकार अली शमखानी की हत्या करके ईरानी सुप्रीम लीडर के ऑफिस को निशाना बनाया। इजरायल की आक्रामकता जारी रहने की उम्मीद है। आईडीएफ ने रविवार की दोपहर ईरानी नागरिकों को मिलिट्री वेपन प्रोडक्शन फैसिलिटी को छोड़ने के लिए वॉर्निंग जारी की। इजरायल इस कार्रवाई से क्या हासिल करना चाहता है और ईरान के पास में क्या ऑप्शन हैं। इसके बारे में एक्सपर्ट ने विस्तार से बताया है।
ईरान पर 13 जून को इजरायल ने हमला किया था। ईरान-इराक युद्ध के बाद यह काफी बड़ा हमला था। हालांकि, जहां तक ईरान के न्यूक्लियर प्रोग्राम को तबाह करने के मकसद का सवाल है तो इजरायल के हमले सीमित रहे। एक तरफ तो इजरायल की हरकतें तकनीकी तौर पर ईरान के न्यूक्लियर प्रोग्राम पर डोनाल्ड ट्रंप की तत्काल सौदेबाजी की स्थिति को मजबूत करती हैं। वहीं अब अमेरिकी राष्ट्रपति ने मांग की है कि ईरान संघर्ष को रोकने के लिए आगे की बातचीत करे। इतना ही नहीं डोनाल्ड ट्रंप लगातार इस बात पर अड़े हुए हैं कि इजरायल की कार्रवाई एकतरफा थी। वहीं उन्हें इजरायल के प्लान के बारे में पता है।
लेकिन इजरायल ने अभी तक ईरान के फोर्डो और खोंडब न्यूक्लियर साइट्स पर हमला नहीं किया है। फोर्डा पूरी तरह से अंडरग्राउंड है और ईरान के न्यूक्लियर प्रोग्राम का केंद्र है। वहीं नातान्ज पर इजरायल ने हमला किया था। प्लांट लंबे समय से इजरायली तोड़फोड़ अभियानों का विषय रहा है। इजरायल के पूर्व प्रधानमंत्री एहुद बराक जैसे इजरायली एक्सपर्ट लगातार इस बात पर जोर देते हैं कि न तो इजरायल और न ही अमेरिकी सैन्य कार्रवाई ईरान के न्यूक्लियर प्रोग्राम को खत्म कर सकती है।
ईरान-इजरायल युद्ध का भारत पर क्या असर पड़ेगा?
ईरान के परमाणु हथियार के करीब होने के इजरायल के दावे दशकों से दोहराए जा रहे हैं। इजरायल का उद्देश्य ईरानी सिक्योरिटी को कमजोर करना और इसके संचालन नेतृत्व को खत्म करना है। जबकि इजरायल को फोर्डो जैसी साइटों पर प्रभावी ढंग से हमला करने के लिए यकीनन अमेरिका की ज्यादा भागीदारी की जरूरत होगी।
ईरान की कमजोरियों के बारे में इजरायल के आकलन को ईरान के प्रमुख कर्मियों की सुरक्षा के मामले में सही ठहराया गया है। हालांकि, तेहरान ने छोटे पैमाने पर इजरायली हमलों का जवाब देने की क्षमता दिखाई है। इसको एक उदाहरण के जरिये समझें तो ईरान की असलुयेह रिफाइनरी और साउथ पारस गैस फील्ड पर इजरायल के हमले के बाद ईरान ने हाइफा में बाजन तेल रिफाइनरी को टारगेट किया। यह आईडीएफ के फ्यूल की जरूरतों को पूरा करता है।
ईरान ने राष्ट्रपति मसूद पेजेशकियन के नेतृत्व में अमेरिका के साथ बातचीत की मेज पर कदम रखा, ताकि अपनी अर्थव्यवस्था को कमजोर करने वाले प्रतिबंधों से राहत मिल सके। साथ ही अमेरिका-ईरान वार्ता के बीच में होने वाला हमला एक ऐसे मुख्य वर्ग को मजबूत करेगा जो अमेरिका को एक कपटी वार्ताकार के तौर पर देखता है।
इजरायल और अमेरिकी नेताओं की तरफ से सत्ता परिवर्तन की मांग को और भी ज्यादा गहरा कर दिया है। यह मान लेना भी गलत होगा कि ईरानी कट्टरपंथियों ने परमाणु समझौते पर अपना प्रभाव खो दिया है। मोहम्मद बाघेर गालिबफ जैसे प्रमुख कट्टरपंथी नेता राष्ट्रीय सुरक्षा के मामलों में प्रभावशाली बने हुए हैं। वार्ता जारी रखने के लिए वाशिंगटन का खुलापन ईरान के लिए कोई मतलब नहीं रखता है। अमेरिका फिर से वॉर्ता शुरू करने के पक्ष में है। हालांकि, जब ही वह ऐसा करेगा जब इजरायल हमले बंद कर दे।
ईरान-इजराइल के बीच परमाणु को लेकर हो रहा हमला
इजरायल की आक्रामकता पर इंटरनेशनल लेवल पर रिएक्शन एक जैसे नहीं रहे हैं। यूरोपीय और अमेरिका की प्रतिक्रियाएं ईरान के न्यूक्लियर प्रोग्राम के खतरों पर केंद्रित रही है। दूसरी तरफ, खाड़ी देशों की प्रतिक्रियाओं में लगातार बदलाव दिखा है। ईरान के खाड़ी अरब पड़ोसी ईरानी मिसाइलों के खिलाफ इजरायल के एयर डिफेंस नेट का अभिन्न अंग बनने से हटकर इजरायल की आक्रामकता की निंदा करने और ईरानी संप्रभुता के लिए सम्मान की मांग करने लगे हैं। वास्तव में कट्टर प्रतिद्वंद्वी रियाद ने इजरायल की कार्रवाई की कड़ी निंदा की है।
हालांकि, इजरायल के हमले ने ईरान को गतिरोध की ओर धकेल दिया है। एक तरफ, इससे ईरान की परमाणु हथियार की खोज को फिर से जिंदा करने की जरूरत बढ़ गई है। दूसरी तरफ ईरान के पास आधुनिक हथियारों की कमी भी उसके व्यवहारिक दृष्टिकोण अपनाने के लिए मजबूर करती है। अगर ईरान परमाणु विस्फोट करने में सक्षम भी हो, तो भी देश में खुफिया जानकारी के हाई लेवल को देखते हुए ऐसा करना मुश्किल होगा।
सबसे खास बात यह है कि ईरान ने अभी तक सीधे या अपने प्रॉक्सी के जरिये अमेरिकी राजनयिक और सैन्य बुनियादी ढांचे को निशाना नहीं बनाया है। इजरायल के पास ईरान पर तब तक हमले जारी रखने की क्षमता है, जब तक वह इसे जरूरी समझता है। हालांकि, इसका ज्यादातर मकसद अमेरिका को शामिल किए बिना पूर्ण पैमाने पर युद्ध के बिना पूरे नहीं हो सकता। ईरान के लिए बांध में कुछ बड़े छेदों को भर देना, बांध के पूरी तरह टूटने से बेहतर है।
तेहरान इजरायल के उद्देश्यों का मुकाबला करने के लिए अमेरिका के साथ परमाणु समझौते के लिए अपनी भागीदारी जारी रख सकता है और सैन्य रूप से मजबूर किए जाने के बजाय रियायतें दे सकता है। यह देखते हुए कि इजरायल के युद्ध की वजह साफ नहीं है और तेल अवीव के भविष्य की कार्यवाही का पता लगाना मुश्किल है। हालांकि, इन विकल्पों के बीच, ईरान द्वारा होर्मुज जलडमरूमध्य को जबरन बंद करना बेहद असंभव है। जबकि ईरान के पास बहुत सीमित नाकाबंदी लागू करने की क्षमता है। पल-पल की अपडेट्स के लिए पढ़ें लाइव ब्लॉग…