Bulldozer Justice: सीजेआई बीआर गवई ने हाल ही में एक आदेश का जिक्र करते हुए कहा कि सरकारें कभी भी न्यायपालिका की जगह नहीं ले सकतीं। इस सप्ताह की शुरुआत में भारत में सरकारी प्राधिकारियों द्वारा निजी संपत्तियों के प्रतिशोधात्मक विध्वंस (Retributive Demolition) के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर प्रकाश डालते हुए सीजेआई ने कहा कि कार्यपालिका (Executive) न्यायाधीश (Judge), जूरी (Jury) और जल्लाद (Executioner) नहीं बन सकती।

बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, चीफ जस्टिस ने कहा कि हाल ही में, कोर्ट ने संरचनाओं के विध्वंस के मामले में निर्देशों के संबंध में न्यायालय ने राज्य अधिकारियों द्वारा अभियुक्तों के घरों और संपत्तियों को ध्वस्त करने के निर्णयों की जांच की, जो कि उन्हें न्यायालय द्वारा दोषी ठहराए जाने से पहले ही दंड के रूप में दिए गए थे। यहां, न्यायालय ने माना कि इस तरह के मनमाने विध्वंस, जो कानूनी प्रक्रियाओं को दरकिनार करते हैं, कानून के शासन और अनुच्छेद 21 के तहत आश्रय के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करते हैं। कार्यपालिका एक साथ न्यायाधीश, जूरी और जल्लाद नहीं बन सकती।

सीजेआई ने कहा कि शीर्ष अदालत के फैसले ने इस बात की पुष्टि की है कि संवैधानिक गारंटियों को न केवल नागरिक स्वतंत्रता की रक्षा करनी चाहिए, बल्कि प्रत्येक व्यक्ति, विशेष रूप से कमजोर लोगों की गरिमा, सुरक्षा और भौतिक कल्याण को भी बनाए रखना चाहिए।

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न्यायमूर्ति गवई, जिन्होंने पिछले साल फैसला सुनाने वाली पीठ का नेतृत्व किया था, 18 जून को मिलान अपीलीय न्यायालय में “देश में सामाजिक-आर्थिक न्याय प्रदान करने में संविधान की भूमिका: भारतीय संविधान के 75 वर्षों पर विचार” विषय पर बोल रहे थे।

सीजेआई गवई ने कहा कि पिछले 75 वर्षों में भारत द्वारा हासिल किए गए सामाजिक-आर्थिक न्याय ने भारतीय संविधान के आलोचकों को गलत साबित कर दिया है। उन्होंने संवैधानिक लक्ष्यों को मजबूत करने में न्यायपालिका द्वारा निभाई गई भूमिका पर प्रकाश डाला।

सीजेआई गवई ने कहा कि मैं कह सकता हूं कि संसद और न्यायपालिका दोनों ने 21वीं सदी में सामाजिक-आर्थिक अधिकारों के दायरे का विस्तार किया है । उन्होंने कहा कि भारतीय संविधान ने आम लोगों के जीवन में बदलाव लाने का प्रयास किया है। वहीं, आइए जानते हैं कि जस्टिस वर्मा केस में जजों के पैनल ने क्या कहा? पढ़ें…पूरी खबर।