Pakistan Iran Relations: ईरान के साथ चल रहे इजरायल के संघर्ष में एक बड़ा सवाल पाकिस्तान को लेकर है। सीधा सवाल यह है कि पाकिस्तान इस संघर्ष में आखिर क्या करेगा? क्या वह इस्लामिक मुल्क होने के नाते पाकिस्तान का साथ देगा या फिर अमेरिका के दबाव में शांत बैठा रहेगा? इस सवाल के जवाब का इंतजार दुनिया भर के तमाम मुस्लिम मुल्क कर रहे हैं।
ईरान-इजरायल संघर्ष शुरू होने के बाद दो बड़ी बातें हुई हैं। पहली यह कि जब ईरान के एक आर्मी जनरल ने यह दावा किया कि पाकिस्तान ने ईरान की परमाणु प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने का वादा किया है तो पाकिस्तान के विदेश मंत्री इशाक डार ने तुरंत इसका खंडन कर दिया। डार ने और कहा कि इस्लामाबाद ने ऐसा कोई बयान नहीं दिया है।
दूसरी अहम घटना यह हुई कि पाकिस्तान के आर्मी चीफ असीम मुनीर को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने व्हाइट हाउस में लंच के लिए बुलाया। मुनीर ने इससे ठीक पहले ईरान को समर्थन देने की बात कही थी लेकिन ट्रंप के साथ लंच के बाद पाकिस्तान की सेना के बयान में सिर्फ इतना कहा गया कि अमेरिका और पाकिस्तान ने ईरान-इजरायल संकट का हल निकालने पर जोर दिया है।
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इन सब बातों के बीच ही आईए जानने की कोशिश करते हैं कि पाकिस्तान और ईरान के संबंध कैसे रहे हैं?
ईरान वह पहला देश था जिसने 1947 में पाकिस्तान को मान्यता दी थी। जब ईरान में शाह मोहम्मद राजा पहलवी का शासन था तो भारत के साथ हुए 1965 और 71 के युद्ध के दौरान ईरान ने पाकिस्तान को सैन्य और कूटनीतिक सहायता दी थी लेकिन 1979 में हुई इस्लामिक क्रांति के बाद दोनों देशों के बीच कई मौकों पर टकराव भी हुआ।
पाकिस्तान और ईरान के बीच 900 किलोमीटर का लंबा बॉर्डर है। इस बॉर्डर के एक तरफ पाकिस्तान का बलूचिस्तान है और दूसरी तरफ ईरान का सिस्तान-बलूचिस्तान प्रांत है। पाकिस्तान और ईरान दोनों एक-दूसरे पर अलगाववादी समूहों को पनाह देने का आरोप लगाते हैं। पिछले एक दशक में कम से कम 15 बार दोनों देशों के बीच बॉर्डर पर झड़प हो चुकी है। सबसे ताजा झड़प जनवरी 2024 में हुई थी।
ईरान और पाकिस्तान के बीच अफगानिस्तान को लेकर भी हमेशा से विवाद रहा है। ईरान ने 1990 के दशक के अंत तक तालिबान विरोधी ताकतों का समर्थन किया था जबकि पाकिस्तान तालिबान को समर्थन देता रहा है। एक अहम बात यह भी है कि पाकिस्तान में सुन्नी समुदाय के कुछ संगठनों पर आरोप लगता है कि वे वहां के शिया समुदाय के लोगों का उत्पीड़न करते हैं। पाकिस्तान में शिया समुदाय अल्पसंख्यक है जबकि सुन्नी बहुसंख्यक।
ईरान और अमेरिका के बीच तनाव और पाकिस्तान जिस तरह अमेरिका की मदद पर निर्भर है उससे इस्लामाबाद और तेहरान के संबंध काफी जटिल हुए हैं। इस वजह से भी पाकिस्तान ईरान-इजरायल संघर्ष के मामले में बेहद नपा-तुला रुख अपना रहा है।
Israel Iran News LIVE:
पाकिस्तान ईरान को नई दिल्ली से दूर करना चाहता है और उसके द्वारा ईरान का समर्थन करने को इसी तरीके से देखा जाता है। यहां ध्यान देना जरूरी होगा कि भारत ने ईरान और इजरायल संघर्ष को लेकर संतुलित बयान दिया और किसी भी पक्ष की निंदा नहीं की और ना ही किसी का समर्थन किया। भारत और ईरान के भी पुराने और ऐतिहासिक संबंध रहे हैं।
यहां पर भारत की भी बात करनी होगी क्योंकि भारत और पाकिस्तान के संबंध भी पिछले कुछ सालों से काफी तनावपूर्ण रहे हैं। भारत ने पाकिस्तान को कूटनीतिक रूप से अलग-थलग करने की कोशिश की है। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में तनाव काफी बढ़ गया था और उस पर डोनाल्ड ट्रंप का यह बयान आना कि उन्होंने सीजफायर करवाया है, इससे भारत स्पष्ट रूप से नाराज है। पाकिस्तान को कूटनीतिक रूप से दरकिनार करने की भारत की रणनीति में ईरान एक अहम अंग है।
भारत ने ईरान के चाबहार पोर्ट में निवेश किया है और यहां वह ऑपरेशन भी कर रहा है। भारत ईरान के रास्ते इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रेड कॉरिडोर को भी बढ़ावा दे रहा है। इस वजह से पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट को चुनौती मिल सकती है और यह चाबहार से सिर्फ 70 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
अंत में यह कि ईरान-इजरायल के संघर्ष में अभी तक अमेरिका की भूमिका स्पष्ट नहीं है। अमेरिका इस संघर्ष में इजरायल के साथ खुलकर उतरेगा या नहीं, इसे लेकर वह खुद भी अब तक कुछ तय नहीं कर पाया है।