Iran Israel War: ईरान और इजरायल के युद्ध में अमेरिका ने कूदकर जमीन पर सारे समीकरण बदल डाले हैं, तनाव इतना ज्यादा बढ़ चुका है कि कब क्या हो जाए नहीं कहा जा सकता। इस समय ईरान की तरफ से जिस तरह से बयान दिए जा रहे हैं, माना जा रहा है कि अमेरिका पर भी जवाबी कार्रवाई हो सकती है। इजरायल पर लगातार मिसाइलें दाग तो ईरान ने पहले ही अपना गुस्सा जाहिर कर दिया है, लेकिन अब लग रहा है कि अमेरिका के खिलाफ भी कोई भी कार्रवाई संभव है।
इस समय ईरान के पास दो ही रास्ते बचे हैं, वो या तो कूटनीति को हथियार बना पूरी दुनिया को सबक सिखाएगा या फिर वो सिर्फ अमेरिका के सैन्य ठिकानों को निशाना बना दुनिया की सबसे बड़ी महाशक्ति को कड़ा संदेश देने की कोशिश करेगा। बात अगर कूटनीतिक रास्ते की करें तो ईरान तेल मार्ग Strait Of Harmoz को बंद करने का मन बना चुका है। उसकी संसद ने इसे लेकर एक प्रस्ताप को पारित भी कर दिया है, अब तो सिर्फ नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल को हरी झंडी दिखानी है।
अब Strait Of Harmoz को बंद करना ईरान का एक कूटनीतिक कदम रहने वाला है, वो आज तक इसे अपना सबसे बड़ा सियासी हथियार भी मानता आ रहा है। यहां पर यह समझना जरूरी हो जाता है कि ईरान के पास सीमित हवाई शक्ति है, उसके पास लेटेस्ट जनरेशन वाले एयरक्राफ्ट भी मौजूद नहीं है। ऐसे में वो अपनी मिसाइलों के दम पर ज्यादा लंबा युद्ध नहीं लड़ सकता। इसी वजह से उसके पास कूटनीतिक या कहना चाहिए ब्लैकमेल करने के लिए Strait Of Harmoz जैसा एक बड़ा सियासी हथियार मौजूद है।
होर्मुज जलडमरूमध्य (Strait of Hormuz) ईरान और ओमान के बीच एक महत्वपूर्ण संकरा जलमार्ग है और फारस की खाड़ी को ओमान की खाड़ी और अरब सागर से जोड़ता है। अमेरिकी ऊर्जा सूचना प्रशासन (EIA) इसे दुनिया का सबसे महत्वपूर्ण तेल ट्रांजिट चोकपॉइंट कहता है, जिसमें वैश्विक लिक्विड पेट्रोलियम ईंधन की खपत और ग्लोबल लिक्विफाइड प्राकृतिक गैस (LNG) व्यापार का लगभग पांचवां हिस्सा जलडमरूमध्य से होकर गुजरता है।
अब ईरान को भी इसकी अहमियत पता है, वो जानता है कि अगर दुनिया इजरायल के अग्रेशन के बाद भी उसका समर्थन नहीं कर रही है तो इस कदम के बाद जरूर उसे झुकना पड़ सकता है। इस हमले से ईरान को एक फायदा यह भी है कि उसे सैन्य ताकत का इस्तेमाल नहीं करना पड़ेगा, सीधा युद्ध भी नहीं छिड़ने वाला है।
लेकिन यह सिर्फ एक विकल्प है और जरूरी नहीं कि ईरान इससे संतुष्ट हो जाए। उसके पास अभी एक दूसरा विकल्प भी मौजूद है जो ना सिर्फ पूरे मिडिल ईस्ट में हालात और ज्यादा विस्फोटक कर सकता है बल्कि कहना चाहिए सीधे-सीधे बड़े युद्ध को आमंत्रण दे सकता है। ऐसी खबर है कि ईरान की टॉप लीडरशिप अभी से ही रणनीति बनाने में जुट चुकी है कि अमेरिका को उसके हमले का कैसे जवाब दिया जाए। अपने देश में भी क्योंकि साख बचानी है, ऐसे में अमेरिका को जवाब देने का दबाव बढ़ता जा रहा है।
जानकार मानते हैं कि ईरान बहरीन के मीना सलमान में अमेरिकी बेस को निशाना बना सकता है। इसके अलावा ईरान, इराक और सीरिया में बैठे अपने प्रॉक्सियों के जरिए भी एट-तन्फ़, ऐन अल-असद या एरबिल में अमेरिकी बेस को नुकसान पहुंचा सकता है। बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक जरूरत पड़ने पर ईरान अमेरिकी नेवी की वॉरशिप को भी निशाने पर ले सकता है। पिछले कुछ सालों से ईरान की नेवी इस पूरी कार्रवाई की प्रैक्टिस भी कर रही है।
भारत के पास भी अमेरिका जैसी ताकत
यहां पर यह याद रखना जरूरी है कि हूती विद्रोही तो पहले ही अमेरिका को बड़ी धमकी दे चुके हैं,यमन में बैठे इन लड़ाकों ने पहले ही साफ कर दिया था कि अगर अमेरिका इस युद्ध में कूदा तो लाल सागर में अमेरिकी वैसल्स को नुकसान पहुंचया जाएगा। ऐसे में अब तो अमेरिका ने ईरान की तीन-तीन न्यूक्लियर साइट्स को निशाने पर लिया है, ऐसे में इन हूतियों के सक्रिय होने की पूरी संभावना है। हमास और हिजबुल्लाह जैसे प्रॉक्सी भी इस युद्ध में अमेरिका के खिलाफ उतर सकते हैं।
अब फैसला ईरान को करना है कि वो कूटनीतिक रास्ते को चुनने वाला है या फिर सैन्य रास्ते को। दोनों ही विकल्पों में अपनी चुनौतियां छिपी हैं, दोनों ही विकल्प जमीन पर समीकरण बदलने वाले भी साबित हो सकते हैं।
ये भी पढ़ें- ईरान बंद करेगा Strait Of Hormuz?