Delhi Court: दिल्ली की एक कोर्ट ने हाल ही में सात महिलाओं को बरी कर दिया। जिन पर पिछले साल एक बार में अश्लील डांस करने और लोगों को परेशान करने का आरोप लगाया गया था। पहाड़गंज पुलिस स्टेशन ने महिलाओं के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 294 के तहत मामला दर्ज किया है, जो किसी सार्वजनिक स्थान पर दूसरों को परेशान करने के लिए किए गए किसी भी अश्लील कृत्य को अपराध मानता है।
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, तीस हजारी कोर्ट की अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट नीतू शर्मा ने कहा कि अभियोजन पक्ष यह साबित करने में विफल रहा कि मामले में कोई अपराध हुआ था। जज ने 4 फरवरी को अपने फैसले में कहा कि अब न तो छोटे कपड़े पहनना अपराध है और न ही गानों पर नाचना दंडनीय है, चाहे ऐसा नृत्य सार्वजनिक रूप से किया गया हो या नहीं। केवल तभी दंडनीय है जब नृत्य करने वाले के अलावा अन्य को इससे परेशानी हो।
यह मामला एक सब-इंस्पेक्टर की शिकायत पर दर्ज किया गया, जिसने दावा किया कि वह इलाके में गश्त कर रहा था। उसका आरोप था कि जब वह बार में दाखिल हुए तो उन्होंने देखा कि कुछ लड़कियां छोटे कपड़े पहनकर अश्लील गानों पर नाच रही थीं।
कोर्ट ने कहा कि पुलिस अधिकारी ने कहीं भी यह दावा नहीं किया कि डांस से किसी अन्य व्यक्ति को परेशानी हुई। कोर्ट ने आगे कहा कि अभियोजन पक्ष के दो गवाहों ने कहा कि वे उस जगह पर मौज-मस्ती के लिए गए थे और उन्हें मामले के बारे में कुछ भी पता नहीं था। इसमें आगे कहा गया कि यह स्पष्ट है कि पुलिस ने एक कहानी गढ़ी लेकिन उसे जनता का समर्थन नहीं मिला। ऐसी परिस्थितियों में, भले ही हम एसआई धर्मेंद्र के दावे को स्वीकार कर लें, लेकिन इससे अपराध की प्रकृति स्थापित नहीं होगी।
इसके अलावा, कोर्ट ने कहा कि एसआई कोई ड्यूटी रोस्टर या डीडी प्रविष्टि प्रस्तुत करने में असफल रहा है, जिससे पता चले कि वह वास्तव में संबंधित क्षेत्र में प्रासंगिक समय पर गश्त पर था। यह भी कहा गया कि एक पुलिस अधिकारी जो ड्यूटी पर है, वह केवल डीडी प्रविष्टि के माध्यम से पुलिस स्टेशन छोड़ सकता है, अन्यथा नहीं। चूंकि, क्षेत्र में पीडब्लू 1 की उपलब्धता दिखाने के लिए एक दस्तावेजी सबूत मौजूद होना चाहिए, इसलिए मौखिक दावे को स्वीकार करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है जब वह ऐसा कोई रिकॉर्ड नहीं लाया है।
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कोर्ट ने पुलिस द्वारा किसी भी सार्वजनिक व्यक्ति को जांच में शामिल न करने पर भी सवाल उठाया। कोर्ट ने कहा कि संबंधित क्षेत्र ऐसा नहीं है जहां लोग उपलब्ध न हों। इस बीच, कोर्च ने बार के प्रबंधक को भी बरी कर दिया, जिस पर दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 144 के तहत एसीपी, पहाड़ गंज द्वारा जारी आदेश/अधिसूचना का उल्लंघन करते हुए बार में सीसीटीवी कैमरों का उचित रखरखाव न करने का आरोप था।
कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष यह दिखाने के लिए कोई सबूत पेश करने में असफल रहा कि अधिसूचना कभी प्रकाशित हुई थी या अभियुक्त को एसीपी द्वारा जारी आदेश की वास्तविक जानकारी थी। इसने यह भी कहा कि ऐसा कोई आरोप नहीं था कि संबंधित रेस्तरां और बार उचित लाइसेंस के बिना या सरकार द्वारा जारी प्रावधानों और दिशानिर्देशों का उल्लंघन करते हुए चल रहे थे। कोर्ट ने कहा कि इसलिए, इस संबंध में कोई विशिष्ट साक्ष्य प्रस्तुत न किए जाने के कारण, संदेह का लाभ आरोपी के पक्ष में जाता है, क्योंकि कानून में यह स्थापित प्रावधान है कि जहां दो दृष्टिकोण संभव हों, वहां आरोपी के पक्ष में एक दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए।
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