Chhatrapati Shahu Aurangzeb Tomb Visit: औरंगजेब को लेकर महाराष्ट्र में शुरू हुआ घमासान अब इस मुगल शासक की कब्र को गिराने तक पहुंच गया है। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने औरंगजेब की कब्र को हटाने की मांग का समर्थन किया। हाल ही में आई बॉलीवुड फिल्म ‘छावा’ की रिलीज के बाद औरंगजेब को लेकर न सिर्फ महाराष्ट्र बल्कि देश में कई जगहों पर जबरदस्त बहस शुरू हो गई है।
मराठा साम्राज्य के संस्थापक छत्रपति शिवाजी महाराज के वंशज और बीजेपी के सांसद उदयनराजे भोसले ने औरंगजेब को ‘चोर’ कहा है। लेकिन अगर आप इतिहास में झांकेंगे तो पता चलेगा कि मराठा शासकों का नजरिया ऐसा नहीं था। 1674 से 1818 तक चले मराठा संघ के दौरान मुगल स्मारकों के प्रति मराठा शासकों का रवैया संतुलित था। मराठाओं ने अपनी राजनीतिक और सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखते हुए मुगल शासन में बनाई गई संरचनाओं के प्रति सम्मानजनक रवैया अपनाया।
ऐतिहासिक दस्तावेजों के मुताबिक, मराठा साम्राज्य के पांचवें शासक और छत्रपति शिवाजी महाराज के पोते छत्रपति शाहू प्रथम श्रद्धांजलि देने के लिए औरंगज़ेब की कब्र पर गए थे।
औरंगजेब का महाराष्ट्र से क्या कनेक्शन, मराठा समुदाय क्यों मानता है इस मुगल शासक को अपना दुश्मन?
छठे मुगल सम्राट औरंगजेब की मौत 3 मार्च, 1707 को अहमदनगर (महाराष्ट्र) में 88 वर्ष की उम्र में हुई थी। औरंगजेब ने 49 साल तक शासन किया जिसमें से अपने जीवन के अंतिम 25 साल तक इस मुगल बादशाह ने मराठाओं के खिलाफ युद्ध लड़ा। युद्ध लड़ने के बावजूद, औरंगजेब का सूफी संतों के प्रति गहरा लगाव था।
औरंगजेब का औरंगाबाद के पास स्थित रौजा नाम की जगह से विशेष लगाव था। इस जगह को अब खुल्दाबाद कहा जाता है। यह इलाका औरंगाबाद शहर से 26 मीटर दूर है और इसे सूफी संतों के लिए पहचाना जाना जाता है।
कैसा था औरंगजेब का शासन, भारत और पाकिस्तान में इस मुगल शासक के बारे में इतिहासकारों ने क्या कहा?
औरंगजेब ने अपनी वसीयत में इच्छा जताई थी कि उसे सूफी संत जैनुद्दीन शिराजी की दरगाह के पास दफन किया जाए। औरंगज़ेब का निधन अहमदनगर में हुआ था लेकिन उसकी इच्छा के मुताबिक उसके शव को 136 किलोमीटर दूर खुल्दाबाद ले जाया गया और यहां दफनाया गया। खुल्दाबाद का नाम औरंगजेब के सम्मान में रखा गया क्योंकि यह कहा गया कि मौत के बाद ‘उसका निवास निवास स्वर्ग में है।’
औरंगजेब की कब्र साधारण सी है। औरंगजेब के बारे में कहा जाता है कि उसने अपनी कब्र को बनाने के लिए सिर्फ 14 रुपये 12 आने खर्च किए थे और यह वह रकम थी जो उसने अपने आखिरी वक्त में टोपियां बुनकर कमाई थी। Archaeological Survey of India (ASI) ने औरंगजेब की कब्र के बारे में कहा है, ‘कब्र में जो प्रवेश द्वार और गुंबद वाला बरामदा है, वह 1760 AD में इसमें जोड़ा गया था। कब्र के ऊपर केवल मिट्टी और एक छोटा सा सब्जा (हरा पौधा) है। यह कब्र खुली छत के नीचे है।’
1707 में जब औरंगजेब की मौत हुई तो यह भारतीय इतिहास में बड़ा मोड था और इसके बाद मराठा साम्राज्य ताकतवर होकर उभरा। औरंगजेब ने 1689 में शाहू प्रथम के पिता छत्रपति संभाजी महाराज को मौत की सजा दी थी।
ऐतिहासिक दस्तावेज बताते हैं कि औरंगजेब की मौत के बाद जब शाहू प्रथम को रिहा किया गया तो वह इस मुगल शासक की कब्र पर गए। शाहू प्रथम को सिर्फ 7 साल की उम्र में मुगलों ने सलाखों के पीछे डाल दिया था और उन्हें 18 साल तक मुगलों की कैद में रहना पड़ा। लेकिन जब उन्हें जेल से रिहा किया गया तो वह खुल्दाबाद गए और औरंगजेब की कब्र पर पहुंचकर श्रद्धांजलि दी। यह घटना महाराष्ट्र सरकार द्वारा प्रकाशित ‘मराठा कालखंड’ (V.G. Khobrekar) में दर्ज है। इसके अलावा इतिहासकार रिचर्ड ईटन की किताब ‘A Social History of the Deccan’ में शाहू प्रथम के औरंगजेब की कब्र पर जाने का जिक्र मिलता है। रिचर्ड ईटन की किताब शाहू प्रथम और ताराबाई (संभाजी की विधवा) के बीच सत्ता संघर्ष के बारे में भी बताती है।
ईटन किताब में लिखते हैं, ‘ताराबाई ने शाहू के मुगलों के शिविर में बिताए 18 साल, फारसी भाषा पर उनकी पकड़ और उनके दरबारी व्यवहार को देखा और इससे ऐसा लगता था कि मराठा राजकुमार सांस्कृतिक रूप से ‘मुगल’ हो गए थे और इसलिए उन पर भरोसा नहीं किया जा सकता था। बाद में जब शाहू प्रथम औरंगजेब की कब्र पर गए तो उन्होंने ताराबाई के आरोपों को सच साबित किया।’
इतिहास को खंगालने पर यह पता चलता है कि मराठा शासन के दौरान ज्यादातर मुगल स्मारक, जिसमें औरंगजेब की कब्र भी शामिल है सुरक्षित रहे और लेकिन कभी-कभी लूटपाट की घटनाएं भी हुईं। एक उदाहरण 1761 में पानीपत की तीसरी लड़ाई से ठीक पहले दिल्ली में लाल किले पर हमले का है। मराठों ने दिल्ली कूच के दौरान दीवान-ए-खास को लूट लिया था, जहां मुगल सम्राट दरबारियों और मेहमानों से मिलते थे।
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